कोरबा/पसान: कार्यवाही करने में क्यों फूल रहे राजस्व अधिकारियों के हाथ-पांव, फर्जी रजिस्ट्री मामला..

कोरबा/पोड़ी उपरोड़ा; कार्यवाही करने में क्यों फूल रहे राजस्व अधिकारियों के हाथ-पांव, फर्जी रजिस्ट्री मामला..

पोड़ी उपरोड़ा; पसान में हुए फर्जी रजिस्ट्री पर कार्रवाई करने में अफसरों के हाथ-पांव फूल रहे हैं। टुकड़ों में बेची गई जमीन के कई टुकड़े हो चुके हैं। बड़े झाड़ के जंगल मद भूमि की अवैध खरीदी बिक्री के इस मामले में अब तक कोई भी जांच कर कार्यवाही की बात कही गई थी लेकिन कई महीनों के बाद भी आज तक किसी प्रकार की कार्यवाही नही की गई है जो कई सवाल खड़े कर रहा है।

क्या है मामला……

पसान क्षेत्र में एक बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया है, जिसमे भू- माफियाओं ने राजस्व विभाग से सांठगांठ कर वनभूमि के बड़े झाड़ की जमीन पर फर्जीवाड़ा को अंजाम दिया है और बकायदा बिक्री के तहत उप पंजीयक कार्यालय कटघोरा में रजिस्ट्री भी करा लिया गया है।

इस संबंध पर सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार पसान में शासकीय बड़े झाड़ की जमीन, खसरा नंबर 174/थ/2, रकबा 0.0183 हेक्टेयर वन अधिकार अभिलेख में दर्ज शासकीय भूमि है, जो बड़े झाड़ का जंगल है, को भू- माफियाओं ने राजस्व अमले से सांठगांठ के जरिये फर्जी तरीके से दस्तावेज तैयार कर 5 जनवरी 2023 को उप पंजीयक कार्यालय कटघोरा से क्रय-विक्रय करा लिया गया। इस प्रकार राजस्व विभाग व भू- माफियाओं की मिलीभगत से बड़े झाड़ के शासकीय वनभूमि के दस्तावेज़ों में छेड़छाड़ कर फर्जी दस्तावेज, किसान किताब व चौहद्दी को फर्जी तरीके से तैयार कर निजी जमीन बता रजिस्ट्री कराकर इस फर्जीवाड़ा को अंजाम दिया गया है।

सूत्रों द्वारा बताया जा रहा है कि हल्का पटवारी व आर आई तथा पंजीयक कार्यालय में बैठे नौकरशाहों ने इस कूटरचना में बराबर की सहभागिता निभाई है। जबकि बड़े झाड़ के जंगल भूमि का न तो रजिस्ट्री, न सीमांकन और न ही बटांकन का नियम है। वन संरक्षण अधिनियम 1980 की धारा 2 के तहत राजस्व दास्तावेज़ों में बड़े झाड़ के जंगल के रूप में दर्ज जमीन का आवंटन को केंद्र शासन की अनुमति के बगैर राज्य शासन के अधिकारी नही कर सकते। हाईकोर्ट ने भी इसमें याचिकाएं खारिज कर दी है, किन्तु यहां पैसों की चकाचौंध के आगे सब मुनासिब हो गया।

इसकी प्रशासन स्तर पर निष्पक्ष और इमानदाराना जांच की जरूरत है क्योंकि वनभूमि में जमीन के पंजीयक बिक्री का कोई प्रावधान नही है, साथ ही राजस्व विभाग की भूमिका को भी जांच के दायरे में समाहित अत्यंत जरूरी है। क्योंकि यह शासन- प्रशासन के नाक नीचे एक कूटरचित कारनामा है। पूरे मामले को जानकारी कलेक्टर से लेकर कमिश्नर बिलासपुर तक को दी गई है परन्तु उसके बाद भी कड़ी कार्यवाही का ना होना पूरे राजस्व विभाग की कार्यशैली पर सवालिया निशान लगा रहा है।