स्टाम्प शुल्क में शासन को बड़ी राजस्व क्षति! सहमति पत्र के निष्पादन में नहीं हो रहा पालन…

स्टाम्प शुल्क में शासन को बड़ी राजस्व क्षति! सहमति पत्र के निष्पादन में नहीं हो रहा पालन

Korba: शासकीय कर्मचारियों को पेंशन योजना का विकल्प चयन के लिए शपथ पत्र एवं सहमति पत्र निष्पादित करना है। इसके निष्पादन में स्टाम्प शुल्क की अनदेखी करते हुए शासन को राजस्व की बड़ी क्षति पहुंचाई जा रही है। इस संबंध में संभावित राजस्व क्षति की ओर शासन का ध्यानाकर्षण कराने राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल एवं कोरबा कलेक्टर संजीव झा को आवेदन सौंपा गया है।

बता दें कि वर्तमान में शासकीय कर्मचारियों को नवीन पेंशन योजना एनपीएस अथवा पुरानी पेंशन योजना ओपीएस के चयन हेतु शपथ पत्र एवं सहमति पत्र निष्पादित कर संबंधित विभाग में जमा करने हेतु 24 फरवरी अंतिम तिथि निश्चित की गई है। राज्य शासन द्वारा छग स्टाम्प अधिनियम के नियमानुसार शपथ पत्र हेतु 5 रुपए एवं सहमति पत्र हेतु 100 रुपए का न्यूनतम गैर न्यायिक स्टाम्प शुल्क निर्धारित किया गया है जबकि एससी-एसटी-ओबीसी वर्ग को शपथ पत्र हेतु स्टाम्प शुल्क की छूट है। देखने में आया है कि अनेक कर्मचारी शपथ पत्र में 5 या 10 रुपए की कोर्ट फी टिकट चस्पा कर रहे हैं जबकि उक्त टिकट न्यायालय में केवल न्यायिक शुल्क हेतु ही मान्य है।

सहमति पत्र को सादे कागज में ही निष्पादित कर विभागों में जमा किया जा रहा है जबकि सहमति पत्र हेतु न्यूनतम 100 रुपए का गैर न्यायिक स्टाम्प पत्र ही जारी किया जा सकता है। साथ ही शपथ पत्र के लिए जारी किए जाने वाले स्टाम्प पत्र पर सहमति पत्र का निष्पादन कराया जा कर विभागों में जमा किया जा रहा है। इस संबंध में अधिवक्ता सह नोटरी (भारत सरकार) सिम्पी कुमार पाण्डेय ने प्रदेश के राजस्व एवं आपदा एवं पुनर्वास मंत्री का ध्यानाकर्षण कराते हुए कहा है कि कोरबा जिले व प्रदेश में लाखों शासकीय कर्मचारी है और जिस तरह से सहमति पत्र हेतु आवश्यक 100 रुपए का न्यूनतम गैर न्यायिक स्टाम्प शुल्क की अनदेखी की जा रही है, उससे शासन को करोड़ों रुपए का राजस्व नुकसान हो रहा है।

श्री पाण्डेय ने कहा है कि उक्त संबंध में यथाशीघ्र आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किया जाना न्यायोचित होगा ताकि शासन को होने वाले संभावित राजस्व आय की क्षति से बचाया जा सके।

दूसरी ओर इस मामले में कर्मचारी नेताओं का कहना है कि शासन ने सहमति पत्र 100 रुपये के स्टांप पेपर में निष्पादित करने जैसी कोई बाध्यता नहीं दी है इसलिए सादे कागज में ही अपनी सहमति दे रहे हैं। शासन इसको मान्य कर रहा है तो कहीं कोई दिक्कत वाली बात नहीं है।