दु:खद…….सत्ताधारी पार्टी के नेता गण और उनके स्वामी चाटुकारिता भरे इस निर्लज्ज प्रदर्शन से भले ही खुश होंगे…

दु:खद…….सत्ताधारी पार्टी के नेता गण और उनके स्वामी चाटुकारिता भरे इस निर्लज्ज प्रदर्शन से भले ही खुश होंगे।

परंतु एक जन पक्षीय पत्रकार होने की नजरिए से देखें तो गांधी और नेहरू के त्याग पर खड़े लोक तंत्र में इस तरह का कृत्य पूरी तरह शर्मनाक लगता है।।हालाकि राजनीतिक पृष्ठ भूमि में इस तरह का आम नजारा हो दोनो प्रमुख राजनीतिक पार्टियों(कांग्रेस और भाजपा) के आयोजनों में अक्सर दिखता है,वह यह बताता है कि,देश में वाकई लोकतंत्र नही बचा है।। सच कहूं तो चुनाव और मतदान की प्रक्रिया सिर्फ ढकोसला बन कर रह गई है।।

ऐसा नहीं है तो खुद आप ही सोचिए,खुद को जनप्रतिनिधि या जनसेवक कहने वाले लोगों के स्वागत सत्कार में एक तरह के राजशाही वैभव का प्रदर्शन करना लोकतांत्रिक देश में उचित है??क्या रेड कारपेट या इस तरह के दूसरे आलीशान राजनीतिक समारोहों का खर्चा नेता गण अपनी जेब से करते है अथवा पार्टी फंड …..

कुछ भी हो मेरी कलम इस तरह के ओछे वैभव शाली राजनीतिक प्रदर्शनो के विरुद्ध चलती रहेगी।। पार्टी कोई भी हो फर्क नहीं पड़ेगा।।। मुझे लगता है किसी भी भारतीय नागरिक को या राजनीतिक दल के कार्यकर्ताओं को अपने नेता/ जनप्रतिनिधि को भगवान बनाना छोड़ना पड़ेगा।। अन्यथा एक तरह की पॉलिटिकल मानसिक गुलामी स्वीकार करनी होगी।। फैसला आपका है ….

नितिन सिन्हा

संपादक खबर सार