गौरेला पेंड्रा मरवाही: केंद्र शासन की योजना में राज्य का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार , दर्ज होना चाहिए एफआईआर
आरोप सिद्ध होने के पांच माह बाद भी कार्यवाही नही शासन और प्रशासन पर सवालिया निशान,
जीपीएम: :- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण योजना केंद्र सरकार की ऐसी महत्ती योजना है जिसमे ग्रामीण मजदूरों को गांव में ही रोजगार के अवसर मिल सके. चूंकि सरकारे भले यह दावा करे कि पूर्ण रोजगार दिया गया है मगर इसकी बानगी कोरोना संक्रमण की पहली लहर में देखने को मिली थी कि किस तरह लाखो मजदूर हजारो किलोमीटर का सफर पैदल चलकर वापस आये थे राज्य सरकार को इसपर गंभीर चिंतन और विचार करना चाहिए मगर सरकार की निरंकुशता ही है जिसका उदाहरण मरवाही वनमंडल पेश कर रहा है जहाँ महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना में करोड़ो का घोटाला उजागर हुआ मगर उक्त गंभीर मामले में भी जिम्मेदार अधिकारी लीपापोती में लगे हुए है.
दरअसल पूरा मामला मरवाही वनमंडल के गौरेला वनपरिक्षेत्र का है जहाँ राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में करोडो का घोटाला • सामने आया है
आपको बता दे कि गौरैला परिक्षेत्र के ठाठपथरा, पकरिया, चुक्तिपानी, पडवनिया एवं तरई गांव में रोजगार मूलक कार्यों में ग्रामीणों को रोजगार न देकर बड़ी बड़ी मशीनों से कार्य करवाया गया इसके साथ जितने भी कार्य कराये गए है वे सभी स्तरहीन एवं घटिया किस्म के है तथा उक्त जगहों में नाम मात्र का ही मटेरियल गिराए गए है और मटेरियल के नाम पर करोडो का भुगतान भी हो चुका है उक्त गंभीर मामले में आयुक्त मनरेगा छत्तीसगढ़ शासन द्वारा के. के. कटारे मुख्य अभियंता मनरेगा छत्तीसगढ़ शासन की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय टीम गठित की गई जांच समिति द्वारा दिनांक 27/08/2021 से 29/08/2021 तक क्रियान्वयन एजेंसी वनविभाग के अधिकारियों एवं कर्मचारियों समेत डीआरडीए के अधिकारी, जनपद पंचायत के अधिकारी तथा स्थानीय गांव के जनप्रतिनिधियों के साथ प्रत्येक निर्माण स्थल जिसकी संख्या 33 है उन सभी स्थानों पर जाकर जांच की गई तथा निर्माण कार्यो की भौतिक स्थिति एवं मौके पर उपलब्ध सामग्रियों का पंचनामा तैयार किया गया ।
जांच समिति द्वारा जांच कार्य के दौरान निर्माण कार्यो में जो एवं खामी पाई गई उसका मुख्य बिंदु निम्नानुसार है :
1 :- जांच से सम्बंधित सभी 33 निर्माण कार्यों के स्टीमेट, प्रशासकीय स्वीकृत आदेश की प्रति कार्ययोजना प्रस्ताव आदि की प्रति निर्माण एजेंसी वनविभाग, डीआरडीए जीपीएम एवं मुख्य कार्यपालन अधिकारी बिलासपुर से मांग की गई किंतु उक्त निर्माण कार्यो का अभिलेख एवं दस्तावेज उपलब्ध नही कराये गए.
2: – जहाँ पुलिया की आवश्यकता नही थी वहाँ पुलिया बनाया गया स्टॉप डेम भी तकनीकी मापदंड के अनुरूप नही है पुलिया एवं स्टॉप डेम के निर्माण कार्य सही गुणवत्तापूर्ण नही पाया गया साथ ही 20 एमएम की गिट्टी की जगह 40 एमएम की गिट्टी उपयोग में लाई गई।
3 : – सामग्री का खरीदी एवं भुगतान 6 माह पूर्व ही किया जा चुका परंतु सामग्री जांच कार्यवाही प्रारंभ होने के दौरान कार्य स्थल के पास पहुँचाया जा रहा था. जितनी मात्रा में सामग्रियों की खरीदी होना बताया गया है कार्यस्थल पर उस मात्रा में सामग्री ही नही पाई.
4 : – क्रियान्वयन एजेंसी वनमंडलाधिकारी द्वारा 33 कार्यों की स्वीकृत राशि 7 करोड़ 32 लाख 85 हजार के विरुद्ध छः करोड़ पचास लाख बावन हजार व्यय किया जाना पाया गया है जिसमे सामग्री खरीदी 6 करोड़ 9 लाख 85 हजार रुपये एवं मजदूरी का भुगतान 40 लाख 66 हजार दर्शाया गया है. तथा जांच समिति द्वारा प्रत्येक कार्य स्थल पर उपलब्ध सामग्री एवं प्रत्येक कार्य स्थल पर कराये गए निर्माण कार्यो (मजदूरी) के मूल्यांकन की अनुमानित राशि लगभग 1 करोड़ 73 लाख 80 हजार रुपये आंकी गई है इसपर क्रियान्वयन एजेन्सी द्वारा 4 करोड़ 76 लाख 72 हजार की राशि का घोटाला होना पाया गया.
5 :- क्रियान्वयन एजेंसी द्वारा निर्माण कार्यो में मजदूरों को काम उपलब्ध कराने के बजाए सामग्री विक्रेता को अनुचित लाभ पहुँचाया गया है जो सीधे पर क्रियान्वयन एजेंसी द्वारा सप्लायर के साथ मिलीभगत से शासकीय राशि का रुपये 4 करोड़ 76 लाख 72 हजार का दुरूपयोग कर गंभीर अनियमितता होना पाया गया.
6 : – उक्त सभी कार्यो में क्रियान्वयन एजेन्सी द्वारा स्वीकृत राशि का लगभग 85% राशि सामग्री खरीदी पर व्यय किया जा चुका है तथा शेष 15% राशि से (मजदूरी कार्य) निर्माण कार्य करा पाना संभव नही है सभी कार्य मजदूरी मुलक न होकर सामग्री मुलक है जो सीधे तौर पर मनरेगा नियम के विरुद्ध है.
जांच समिति को यह रिपोर्ट दिए आज लगभग 5 माह बीत चुके है जिसमे राज्य स्तर की टीम ने जांच किया और यह पाया कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण योजना में करोड़ो का भ्रष्टाचार संबंधित विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों एवं सप्लायर की मिलीभगत से किया गया है.
महत्वपूर्ण बात यह है कि जिला कलेक्टर (जीपीएम) ने भी आयुक्त महात्मा गांधी नरेगा छत्तीसगढ़ को यह लिखित में जानकारी दी है कि वनमंडल मरवाही द्वारा उपरोक्त जाँच संबंधी समस्त कार्यो में मजदूरी भुगतान किए बिना ही सामग्री भुगतान कर लिया गया तथा उक्त खपत सामग्री का सक्षम अधिकारी के मूल्यांकन / सत्यापन किये बिना ही भुगतान कर लिया गया है जो कि विभाग द्वारा कार्य संपादित न करते हुए राशि गबन करने की मंशा को दर्शाता है। साथ ही विभाग द्वारा मनरेगा के लेखा तकनीकी दस्तावेज संधारण के मापदंडो का भी पालन नहीं किया गया है. इसप्रकार वनमंडल वनमंडल मरवाही द्वारा मजदूरी व्यय किये बिना सामग्री राशि आहरण किया जाना महात्मा गांधी नरेगा अधिनियम की मूल धारणा का उलग्घन तथा अधिनियम मापदण्डो व प्रावधानों के विपरीत ठेकेदारी प्रथा से कार्य कराया जाना स्पष्ट होता है जो अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप लेखा एवं दस्तावेज संधारण निर्देशों का अनुपालन न किये जाने के साथ साथ गंभीर वित्तीय अनियमितता को दर्शाता है। उक्त गंभीर अनियमिता के लिए कार्य प्रभारी अधिकारी, कार्य का निरीक्षण करने वाले अधिकारी, सत्यापनकर्ता अधिकारी एवं तत्कलीन वनमंडलाधिकारी वन मंडल मरवाही राकेश मिश्रा (सेवा निर्वित्त) पूर्ण रूप से अनियमितता हेतु जिम्मेदार है.
उक्त गंभीर मामले शिकायत वनमंत्री छत्तीसगढ़ शासन, प्रधान मुख्य वन संरक्षक (छत्तीसगढ़), मुख्य वन संरक्षक (बिलासपुर), कमिश्नर नरेगा (छत्तीसगढ़ रायपुर), कमिश्नर बिलासपुर, मुख्य कार्यपालन अधिकारी बिलासपुर जिलापंचायत, DRDA पेण्ड्रारोड जिला पंचायत, जिला कलेक्टर जीपीएम, पुलिस अधीक्षक पेण्ड्रारोड से की गई वही पुलिस प्रशासन का यह कहना है कि मामला गंभीर है मगर संबंधित विभाग हमे लिखकर देगा तभी कार्यवाही होगी तब सवाल यह खड़ा होता है जो विभाग स्वतः इस भ्रष्टाचार में संलिप्त है वह क्या लिखकर देगा ? जबकि उक्त गंभीर मसले पर जिला कलेक्टर समेत, एवं राज्य स्तरीय टीम की जांच में भ्रष्टाचार होना साफ परिलक्षित होता है मगर उक्त गंभीर मामले में भी जिम्मेदार अधिकारी लीपापोती में लगे हुए है वही यह बात भी जनमानस का चर्चा का विषय है कि जिले के एक बड़े अधिकारी द्वारा मामले को दबाने या खत्म करने के लिए संबंधित आरोपियों से तीस लाख की मांग की गई है. यह मांग तब और सिद्ध होती हुई नजर आती है उक्त • मामले की जांच हुए लगभग पांच माह बीत चुके है इसके बाद भी कार्यवाही न होना यह दर्शाता है कि जिम्मेदार कार्यवाही करने वाले अधिकारी किसी मोटी रकम के इंतजार में है.
तब सवाल यह भी खड़ा होता है कि क्या इसी तरह मजदूरों के पेट में लात मारकर अधिकारी मालामाल होते रहेंगे क्या नियम कानून सिर्फ आम नागरिकों तक ही सीमित है जबकि यह केंद्र शासन की योजना है जिसपर करोड़ो की राशि का गबन किया गया है अब देखना यह होगा कि किस तरह जिम्मेदार अधिकारी उक्त गम्भीर मामले में कार्यवाही करते है या मोटी रकम लेकर मामले को रफा दफा कर लेते है