“संजय त्रिपाठी” का अपने चहेते फर्मो के साथ मिलकर लगभग 100 करोड़ का लैंटाना घोटाला, कार्य स्थल बयां करती सच्चाई, जड़ से उखाड़ने खर्च किए 3 वर्ष में 100 करोड़ रुपए..

लैंटाना घोटाला; कार्य स्थल बया कर रही सच्चाई.. जड़ से उखाड़ने खर्च किए 3 वर्ष में 100 करोड़ रुपए..

 

 

मरवाही: वन मण्डल के वन परिक्षेत्र मरवाही में लेंटाना घास की अगर हम बात करे तो ये पूरी प्रजाति मरवाही वनमण्डल में के कुल वन क्षेत्रों के लगभग 20 प्रतिशत क्षेत्रो में ही पाई जाती है परंतु वन विभाग के पूर्व प्रभारी डीएफओ रहे संजय त्रिपाठी ने बड़े ही शातिराना अंदाज में दिमाग लगाते हुए भ्रष्टाचार को अंजाम दिया पहले तो उनके द्वारा सघन वन क्षेत्र तथा ऊंची- नीची पहाड़ियों में जहां लेंटाना उखाड़ने का कार्य सिर्फ मजदूरों के द्वारा ही किया जा सकता था उन स्थलों में भी उनके द्वारा लेंटाना उखाड़ने के लिए जेसीबी मशीन चलाया जाना दर्शाते हुए राशि का आहरण करते हुए शासकीय राशि का बंदरबांट किया गया।

वंही विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार संजय त्रिपाठी के द्वारा मरवाही में लेंटाना के लिए लगभग 100 करोड़ का बजट विभाग से अलाट किया गया साथ ही उनके द्वारा लगभग 20% लेंटाना सफाई का कार्य मजदूरों से तो वंही लगभग 80 % कार्य को जेसीबी मशीन से किया जाना बता कर कार्य का स्टीमेट स्वीकृत कराया गया इसके बाद उनके द्वारा इन कार्यों के लिए अपने चहेते पार्टनर फर्म

1) ओम ट्रेडर्स मनेंद्रगढ़,

2)गुप्ता पप्लास्टिक बिलापुर ,

3)साहिल इंटर प्राइजेज बिलासपुर

को जेसीबी कार्य का टेंडर देकर बिना पूरा कार्य किये ही फर्जी बिलिंग कर पूरे राशि का गबन कर लिया गया जबकि लेंटाना उन्मूलन में बकायदे 3 वर्ष का कार्ययोजना बनाया गया था जिसमें पहले वर्ष 20 प्रतिशत कार्य कराया गया बाकी के दो वर्षो की आबंटित राशि को सीधे बुक कर अपने चहेते फर्मों के माध्यम से गबन कर लिया गया है अब यदि उनके चहेते फर्मों की जाँच कराई जाए तो उनके द्वारा किए गए भ्रष्टाचार की पोल परत दर परत खुलते जाएगी ऐसे में इन फर्मो के द्वारा जीएसटी भुगतान में भी हेर फेर की संभावनाओं से इंकार नही किया जा सकता अब सवाल ये उठता है

कि इतने बड़े स्तर में हो रहे अनियमितताओं के बावजूद वन विभाग के उच्चाधिकारी सीसीएफ से लेकर पीसीसीएफ तक आखिर संजय त्रिपाठी के साथ ही साथ मरवाही रेंजर दरोगा सिंह के ऊपर जाँच एवं कार्यवाही से क्यों बचते नजर आ रहे है उच्चाधिकारियों तो तत्काल मामले को संज्ञान में लेते हुए पूरे वन मण्डल की बारीकी से जाँच कराते हुए दोषियों पर कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए ताकि विभाग की छवि को बरकरार रखा जा सके….।