प्रभारवाद ले डूबा छत्तीसगढ़ के स्कूल शिक्षा विभाग को , योग्य अधिकारियों की विभाग में नियुक्ति नहीं होना प्रमुख कारण.

प्रभारवाद ले डूबा स्कूल शिक्षा विभाग को

 

 

छत्तीसगढ़: स्कूली शिक्षा के मामले में छत्तीसगढ़ औंधें मुंह गिर गया है। देशभर में कराए गए सर्वेक्षण में राज्यों के बच्चों का परफॉर्मेंस 30 राज्यों से पीछे है। स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता सहित बच्चों की सीखने की क्षमता को परखने के लिए शिक्षा मंत्रालय ने नवम्बर 2021 में सर्वेक्षण करवाया था। नेशनल अचीवमेंट सर्वे 2021 के रिपोर्ट जारी  होते ही शिक्षा गुणवत्ता की कलई खुल गई है।

रिपोर्ट के मुताबिक़ प्रदेश  सभी प्रमुख विषयों जैसे – भाषा , गणित , अंग्रेजी , पर्यावरण और विज्ञान जैसे विषयों में राष्ट्रिय औसत अंक से काफी पीछे है। देश के राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में राज्य के कक्षा तीसरी के बच्चों को भाषा में 500 में से औसतन 301 अंक मिले है। जबकि देश का औसत अंक 323 है। प्रदेश में 34 वां स्थान है। इसी तरह गणित में 32 वां स्थान , पर्यावरण में 34 वां स्थान मिला है। इसी तरह 5 वीं 8 वीं और 10 वीं कक्षा में भी बच्चे पिछड़ गए है।

देश में कुल 1.24 लाख स्कूलों में 38.87 लाख बच्चों पर सर्वें किया गया। इनमे छत्तीसगढ़ से 4481 स्कूलों से 18517 शिक्षक और 115995 विद्यार्थियों ने सहभागिता लिया था।

स्कूल शिक्षा में गिरावट का एक प्रमुख कारण मूल्यांकन का गलत मापदंड के साथ साथ स्कूलों में हो रहा बार – बार प्रयोग भी इसके लिए उतना ही उत्तरदायी है। प्रदेश के स्कूलों में पिछले कई वर्षों से शिक्षा गुणवत्ता बढ़ाने सैकड़ों प्रयोग हुए है। प्रयोगों में मामले में यह स्थिति है कि हर महीने में नई प्रयोग आ जाती है। एक योजना ठीक से लागू भी नहीं होती कि दूसरी योजना आ जाती है।

प्रभारवाद स्कूल शिक्षा विभाग का सबसे महत्वपूर्ण पद होता है विकास खंड शिक्षा अधिकारी का पद जो ना केवल जिला व राज्य स्तर के अधिकारियों और शिक्षा विभाग के साथ विभिन्न योजनाओं का समन्वयन करता है बल्की सीधे-सीधे स्कूलों के अवलोकन/निरीक्षण और गुणवत्तापूर्ण शिक्षण की जिम्मेदारी भी विकास खंड शिक्षा अधिकारी की होती है किंतु वर्तमान में यह पद कमाई का एक जरिया बन गया है।

राज्य स्तर पर यह पद नीलाम होता है जो व्यक्ति नीलामी में अधिक बोली लगाता है उसे मनचाही जगह पर विकास खंड शिक्षा अधिकारी का पद प्रभार के रूप में सौंप दिया जाता है फिर चाहे वह व्यक्ति उस पद के लायक हो या ना हो इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। जो ऐसा व्यक्ति विकास खंड शिक्षा अधिकारी के पद पर बैठता है तो उसका एकमात्र उद्देश्य उस नीलामी बोली से 2 गुना 3 गुना राशि अर्जित करने का होता है जिससे वह देकर यह पद खरीदता है ।

स्कूल शिक्षा विभाग के नियमों और छत्तीसगढ़ शासन के राजपत्र में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि विकास खंड शिक्षा अधिकारी के योग्य या तो कम से कम 5 साल का अनुभव रखने वाले प्राचार्य या कम से कम 5 साल का अनुभव रखने वाले सहायक विकास खंड शिक्षा अधिकारी है, किंतु वर्तमान में छत्तीसगढ़ के अधिकांश विकास खंडों में व्याख्याता/ व्याख्याता (एलबी) /प्रधान पाठक माध्यमिक शाला बीईओ के पद पर बैठे हुए हैं।

माध्यमिक शाला प्रधान पाठक अपने शाला के कक्षा छठवीं से आठवीं तक के शिक्षण व्यवस्था देखने के काबिल होता है उसे विकासखंड का जिम्मा दे दिया जा रहा है ऐसे में छत्तीसगढ़ की शिक्षा का स्तर गिरना लाजमी है व्याख्याता और व्याख्याता (एलबी)अपने विषय के अध्यापन के योग्य होते हैं किंतु उन्हें विकास खंड शिक्षा अधिकारी जैसे प्रशासनिक पद का जिम्मा दे दिया जा रहा है ।कुछ लोगों का तर्क है कि व्याख्याता को अपने विभाग का अनुभव होता है अतः वह बीईओ का कार्य अच्छे से कर सकता है

इस तर्क के आधार पर तो विकासखंड के सबसे वरिष्ठ शिक्षक को विकास खंड शिक्षा अधिकारी बना दिया जाना चाहिए और ऐसी ही व्यवस्था राजस्व विभाग में भी होनी चाहिए जहां सबसे वरिष्ठ कोटवार या पटवारी को तहसीलदार का पद प्रभार के रूप में दे देना चाहिए,लेकिन आपने कहीं सुना है कि नायब तहसीलदार के होते हुए किसी पटवारी या आर आई को तहसीलदार का प्रभार सौंप दिया गया हो ।

यह केवल शिक्षा विभाग ही है जहां योग्य सहायक विकास खंड शिक्षा अधिकारियों होते हुए भी व्याख्याता और प्रधान पाठक को विकास खंड शिक्षा अधिकारी का प्रभाव दे दिया जाता है । आपको बताते चलें कि सहायक विकास खंड शिक्षा अधिकारियों की भर्ती छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग द्वारा की गई है। शासन के नियमानुसार 5 साल की सेवा अवधि पूर्ण करने पर इन्हें बीईओ के पद पर पदोन्नत किया जाना है किंतु इनके प्रमोशन का फाइल उच्च कार्यालय द्वारा जानबूझकर आगे बढ़ाई नहीं जा रही है क्योंकि अगर ये बीईओ बन जाते हैं तो शिक्षा विभाग के कमाई का एक जरिया समाप्त हो जाएगा बीईओ पद की नीलामी भी बंद हो जाएगी ।

शिक्षा विभाग गुणवत्ता में सुधार का सिर्फ दिखावा ही करता रहेगा अलग-अलग योजनाओं के नाम पर पैसे का बंदरबांट करता रहेगा ,किंतु गुणवत्ता सुधार हेतु वास्तविक कदम जो प्रभारवाद समाप्ति का है वह नहीं उठाएगा और जब तक यह प्रभार वाद इस विभाग में जारी रहेगा तब तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की अपेक्षा करना अपने आप को धोखा देना ही है।