कटघोरा: वन अधिकारियों का जंगल घोटाला: लकड़ी गाड़कर खम्भे का पैसा निकाला…
डीएफओ का एक और कारनामा: जंगल में घोटाला: लकड़ी गाड़कर खम्भे का पैसा निकाला…
कोरबा: शासन की विभिन्न योजनाओं सहित कैंपा मद, नरवा विकास योजना के मद से लेकर विभिन्न मदों के कार्यों में जंगल में घोटाला किया जा रहा है। एक और सनसनीखेज मामला सामने आ रहा है जिसमें लकड़ी गाड़कर सीमेंट के खंभे का पैसा निकाला गया है। लकड़ियों की खरीदी नहीं की गई बल्कि जंगल से ही कटवा कर उपयोग किया गया है। एएनआर(प्राकृतिक पुनरूत्पादन) कार्य के अंतर्गत ठूंठ कटाई और लकड़ी खंभे से कांटा तार फेंसिंग कार्य में भारी अनियमितता कर लाखों- करोड़ों रुपये का घोटाला किया गया है। यदि ईमानदारी से जांच हो तो बड़ा घोटाला और वित्तीय अनियमितता उजागर होने की संभावना है।
दरअसल कोरबा जिले के कटघोरा वनमण्डल अंतर्गत चैतमा रेंज के बारी उमराव आरेंज क्षेत्र 541 कूप क्रमांक 08 में 6300 रनिंग मीटर लागत 939000 रुपये के स्थान पर सड़क के दोनों ओर सिर्फ 500 रनिंग मीटर ही लकड़ी खंभे से कांटा तार फेंसिंग का कार्य होना दिख रहा है। जिसमें प्रथम दृष्टया भारी भ्रष्टाचार प्रतीत हो रहा है। एक स्थानीय ग्रामीण मजदूर के अनुसार 20 रुपये प्रति नग में जंगल से काटकर लकड़ी के खंभे का जुगाड बना लिया गया और मानक के विपरीत 14×14 गेज के स्थान पर कम गेज की मोटाई वाला कांटा तार लगाया गया है। विभागीय सूत्रों के बताए अनुसार प्रोजेक्ट के अनुसार 4m/kg के 5 स्टेंड लगाना था तथा 7 रो में कांटा तार लगाए जाने का नियम है जिसमे 2 रो डायगोनल फिक्स किया जाना था।
पहला रो जमीन सतह से 9 इंच की ऊंचाई पर दूसरा पहले से 9 इंच के अंतर तथा तीसरा चौथा व पांचवे रो में 12 इंच का अंतर होना चाहिए परंतु यहां खानापूर्ति मात्र किया गया है। लकड़ी खंभा या आरसीसी पोल को 30×30 *45 cm साइज का गढ्ढा खोदकर 1:3:6 के अनुपात में कंक्रीट से फिक्स किए जाने का नियम है,लेकिन यहां नाम मात्र गढ्ढा खोदकर मिट्टी से पाटा गया है। इसके अतिरिक्त इस कार्य में वर्ष 2022-23 के लिए लगभग 780000 रुपये की राशि ठूठ ड्रेसिंग,क्लीनिंग,अग्नि सुरक्षा , जुताई तथा अन्य आकस्मिक व्यय के नाम पर फर्जी निकाल लिया गया है जबकि उपरोक्त कोई भी कार्य नही हुआ है यही नहीं कूप क्रमांक 08 के कक्ष क्रमांक 25 राहा तथा कूप क्रमांक 08 के कक्ष क्रमांक 78 चैतमा में 2-3 सौ आरसीसी पोल दिखाने मात्र के लिए गिराया गया है लेकिन बिल व्हाउचर प्रोजेक्ट के अनुसार पूरे का बनाया गया है।
इसमें दोष काम कराने वाले वन कर्मचारियों का नहीं है। क्या करें बेचारे, जितना खंभा और तार सप्लाई में लिया गया उतने का ही काम कराया क्योंकि सप्लाई में ही कांटा मार लिया गया। हालांकि जंगल में लकड़ियों को गाड़ कर भी कंटीले तार का घेरा लगाया जाता रहा है लेकिन इस मामले में लकड़ियों को गाड़ने का ऑर्डर कैंसिल करके सीमेंट के पोल पर तार लगाने संबंधित निर्देश दिया गया था।
इस बारे में जानकारी लेने के लिए कटघोरा डीएफओ श्रीमती प्रेमलता यादव को फोन लगाया गया तो कवरेज से बाहर मिला वहीं पाली एसडीओ चंद्रकांत टिकरिया को फोन लगाने पर उन्होंने हर बार की तरह इस बार भी फोन उठाना जरूरी नहीं समझा। वन विभाग के अधिकारियों की संवादहीनता कोई नई बात नहीं है।
0 कम खरीदी में बिल पूरा
गौरतलब हो कि शासन द्वारा बनाया गया कोई भी प्रोजेक्ट गलत नही होता लेकिन सही और गुणवत्तायुक्त प्रोजेक्ट भ्रष्ट अधिकारियों की धनलिप्सा की भेंट चढ़ जाया करती है। एक वन कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सामान खरीदी का अधिकार डीएफओ का है और वो सप्लायर से मात्र 40 प्रतिशत ही सामग्री मंगाते हैं चाहे गिट्टी हो सीमेंट या अन्य सामग्री,और इतने मात्र में ही काम कराने का मौखिक निर्देश रहता है तो काम पूरा कैसे होगा ?
लेकिन बिल व्हाउचर पूरे का मंगा कर तथा सप्लायर से भी पूरे का बिल लेकर आहरण किए जाने का वर्तमान डीएफओ अपना ट्रेंड बना चुकी है । विश्वस्त सूत्रों के अनुसार लकड़ी खंभे का तो मांग पत्र ही इस डिवीजन ने करीब 2 माह पहले ही निरस्त कर चुका है तो लकड़ी खंभे का काम कैसे हुआ ?काम भले ही लकड़ी खंभे से हुआ है परंतु बिल आहरण आरसीसी पोल का हो रहा है। भ्रष्टाचार का यह खेल डीएफओ के निर्देश पर खेला जा रहा है तथा यह कार्य इसी तरह से अन्य रेंज में हुए हैं।
यदि उच्चाधिकारी समय रहते ईमानदारी पूर्वक ध्यान न दें तो एएनआर कार्य भी विगत दिनों उजागर हुए ग्रीन इंडिया मिशन योजना घोटाला से भी बड़ा घोटाला सामने आएगा।