मरवाही वन मंडल में हुए घोटालों की क्या खुलेगी फाईल, नए विधायक पर दारोमदार,
गौरेला पेंड्रा मरवाही: छत्तीसगढ़ में सत्ता बदल गई है। कद्दावर मंत्री भी हार चुके हैं जिनके बलबूते कई विभागों में भ्रष्टाचार का खेल जमकर खेला गया। नवनिर्मित जिला गौरेला पेंड्रा मरवाही में भी इस तरह के कारनामे हुए हैं जिनमें वन महकमा प्रमुख है। सूबे के मुखिया रहे भूपेश बघेल के करीबी वनमंत्री मोहम्मद अकबर की धाक पर मरवाही वन मंडल में तत्कालीन वनमंडल अधिकारी संजय त्रिपाठी ने भ्रष्टाचार और घोटाले का ऐसा खेल खेला जिसकी गूंज आज भी जंगलों में सुनाई देती है। प्रभारी डीएफओ के इशारे पर कुछ रेंजरों, डिप्टी रेंजरों ने जंगल के विकास के लिए विभिन्न मदों में आने वाली राशि की जमकर बंदरबांट की।
इनमे प्रमुख तौर पर स्टाप डेम घोटाला हो या जंगल के भीतर सड़क निर्माण का मामला या फिर नरवा विकास की योजना हो या लेंटाना उन्मूलन करने की बात हो, इन सभी में जमकर भ्रष्टाचार हुए हैं। इन भ्रष्टाचारों को समय-समय पर प्रमुखता से उजागर भी किया गया है। निर्माण कार्यों में मजदूरी घोटाला, तालाब निर्माण में फर्जी कार्य, फर्जी मजदूरों के नाम से पैसा निकालने का मामला हो या मजदूरों के तौर पर हॉस्टल/ छात्रावास के बच्चों के नाम से रुपए निकाल कर गबन करने की बात हो, या काम के बाद सालों से मजदूरी के लिए भटकाने का मामला, इन सब में तत्कालीन रेंजर, वन मंडल अधिकारी के हाथ काफी गहरे तक धंसे हुए हैं।
सूबे में कांग्रेस सरकार और वन मंत्री का करीबी होने का पूरा-पूरा फायदा न सिर्फ संजय त्रिपाठी ने उठाया बल्कि राज्य में वन अधिकारी श्रीनिवास राव के साथ मिलकर निर्माण कार्यों में जमकर भ्रष्टाचार किया है। निर्माण सामग्रियों में गुणवत्ताहीन सामानों की खरीदी कराई गई। बिलासपुर के एक सप्लायर के लिए सांठगांठ कर बाजार में प्रचलित दाम से भी कम मूल्य पर निर्माण सामग्रियों की खरीदी होना दर्शाकर करोड़ों रुपए गबन किए गए। सामानों की डंपिंग हुए बगैर ही उसकी राशि निकाल दी गई, घटिया सीमेंट का घोटाला भी वन मंत्री और राव के संरक्षण में संजय त्रिपाठी ने किया। यहां तक की निर्माण कार्य में सप्लायरों, पौधा सप्लाई आदि की परिवहन की राशि को भी गबन कर लिया गया और इसका भुगतान करने के एवज में 40 से 60% तक की मांग रखी गई।
यह सारे मामले संजय त्रिपाठी के तबादले के बाद डीएफओ बनकर आए दिनेश पटेल ने भी दबा दिए। डीएफओ दिनेश पटेल ने भी इन सभी मामलों और घोटालों की फाइल को कोई तवज्जो नहीं दी। नतीजा या रहा कि वन मंडल में जंगल राज कायम रहा। कुछ लोगों ने तो घोटालों की आड़ में RTI लगाकर अपने मतलब भी साध लिए और रेंजर लेकर अधिकारी ब्लैकमेल तक होते रहे पर बोलें भी तो किस मुंह से जब खुद ही भ्रष्टाचार के दलदल में समाए रहे। एक रेंजर सहित कई अधिकारियों और कर्मचारियों पर तो मनरेगा और कैंपा में करोड़ों की रिकवरी जांच में साबित हुई है लेकिन ना तो एफआईआर हो रही और ना रिकवरी। जांच पर कार्रवाई दिखाने के नाम पर निलंबन तो एक सामान्य प्रक्रिया है।
अब सत्ता बदल चुकी है, वन मंत्री करारी हार का सामना कर चुके हैं। खबर तो यह है कि उनके काफी करीबी रहे श्रीनिवास राव जो की करोड़ों रुपए का घोटाला करके बैठे हैं, उन पर जांच बिठाई जाएगी। ऐसी सुगबुगाहट के बीच चर्चा यह भी है कि अगर मरवाही वनमंडल की फाइल खुली तो संजय त्रिपाठी भी जांच की आंच से नहीं बच सकते । संजय त्रिपाठी ने कई बार वन विभाग और विधानसभा में गलत जानकारी देकर गुमराह करने का दुस्साहस किया है जिस पर जानकार बताते हैं कि विभाग को गुमराह करने की हिमाकत पर एफआईआर तो दर्ज होना ही चाहिए। कई भाजपा विधायको ने इस मामले को सदन में उठाया जरूर, लेकिन वह भी न जाने क्यों खामोश बैठ गए?
अब यह नई सरकार में बनने वाले नए मुख्यमंत्री और नए वन मंत्री के साथ-साथ मरवाही के नए विधायक भी का दायित्व होगा कि वह मरवाही वन मंडल में हुए घोटाले की फाइल की परतें खोलें।