श्रद्धेय डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के सिद्धांतों कथन को आत्मसात करना होगा

*श्रद्धेय डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के सिद्धांतों कथन को आत्मसात करना होगा*

अंतराष्ट्रीय अग्रवाल सम्मेलन महिला इकाई छत्तीसगढ़ प्रांत की अध्यक्षा डॉ अनीता अग्रवाल डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी मंच की प्रांत उपाध्यक्ष के द्वारा प्रखर विचारक महान शिक्षाविद् जनसंघ के संस्थापक श्रद्धेय *डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती* पर उनकी *डिजिटल छायाचित्र* पर पुष्प अर्पित कर उन्हें शत् शत् नमन किया। संस्था के सदस्यों ने *जयंती को यादगार* बनाने के लिए अपने अपने नगर में फलदार जामुन, आंवला ,आम ,अमरूद, सीताफल के *पौधे रोपे* गए कपड़े के थैले बनवा *पॉलीथिन मुक्त शहर* के उद्देश से वितरण किया।डिजिटल सत्संग भजन किया गया। *भाषण प्रतियोगिता* का आयोजन किया गया जिसका विषय था *श्रद्धेय डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के सिद्धांतों द्वारा भारत को पुनः विश्व गुरु बनाना* सभी प्रतिभागियों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया *प्रथम स्थान पर सुलोचना धनावत द्वितीय स्थान पर कमलेश बोंदिया सिमगेड़ा झारखंड और उषा कलानोरिया और तृतीय पुष्पा अग्रवाल और भगवती अग्रवाल* रही।
उमा अग्रवाल पुष्पा अग्रवाल कमलेश, भगवती अग्रवाल सुलोचना धनावत सरोज अग्रवाल उषा कलानोरिया
मंजू अग्रवाल मंजू गोयल प्रेमलता गोयल व अन्य सदस्यों ने श्रद्धा श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जीवनी उनके सिद्धांतों पर अपनी अपनी अभिव्यक्ति रख उसे दैनिक जीवन में आत्मसात करने का दृढ़ संकल्प लिया।

कार्यक्रम मे मंजू गोयल* ने बताया शनिवार 6 जुलाई को *विश्व जूनोसिस दिवस* हैं। ये दिवस मनाने के पीछे उद्देश्य आमजन को जूनोटिक रोगों के प्रति जागरूक करने का दिवस हैं। मोटे तौर पर समझा जाये तो जूनोटिक रोग वो संक्रामक रोग होते हैं जो कशेरुक जानवरों से मनुष्यों और मनुष्यों से जानवरों में फैलते हैं। जब ये रोग मनुष्यों से जानवरों में फैलते है तो इसे रिवर्स जूनोसिस कहा जाता हैं। ज़ूनोटिक रोग बैक्टीरिया, वायरस, फफूँद अथवा परजीवी किसी भी रोगकारक से हो सकते हैं। भारत मे होने वाले ज़ूनोटिक रोगों में रेबीज, ब्रूसेलोसिस, स्वाइन फ्लू, बर्ड फ्लू, ईबोला, निपाह, ग्लैंडर्स, साल्मोनेलोसिस, लेप्टोस्पाइरोसिस एवम जापानीज इन्सेफेलाइटिस इत्यादि शामिल हैं।
कार्यक्रम की *मुख्य अतिथि पशु चिकित्सक डॉ. किरण चौधरी रायपुर* ने अपने वक्तत्व में बताया अगर किसी गाय को ब्रुसेलॉसिस है और हम उसका कच्चा दूध पी लेते हैं तो ब्रुसेला बैक्टीरिया मनुष्य में पहुंच जाता है। इसके अलावा ट्यूबरकुलोसिस से पीड़ित गाय का दूध निकालने वाले को टीबी होने की आशंका रहती है। सड़ा-गला मांस खाने से साल्मोनोसिस जैसी खतरनाक बीमारी हो सकती है। इसके अलावा अन्य बीमारियां जो पशुओं से मनुष्य में हो सकती हैं, उनमें प्रमुख स्केबीज है, जिसमें कुत्ते की खुजली मनुष्य में हो जाती है। इसके अलावा रिंगवार्म, लेप्टोस्पाइरोसिस, जिआर्डिया,रेबीज जैसी बीमारियां हो सकती हैं।

*कमलेश बोंदिया* ने अपने उद्बोधन में बताया डॉ श्यामा मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई उन्नीस सौ एक में हुआ एक संपन्न बंगाली परिवार मैं जन्मे थे उनके पिता का नाम आशुतोष मुखर्जी था उनका विवाह 1922 में सुधा चक्रवर्ती के साथ हुआ डॉ श्यामा मुखर्जी एक दक्ष राजनीतिज्ञ विद्वान राष्ट्रवादी और देशभक्त थे डॉ श्यामा प्रसाद एक शिक्षाविद प्रखर वक्ता कुशल संगठन करता और बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे स्वतंत्रता के बाद राष्ट्रीय देश को एक राष्ट्र के तौर पर आगे ले जाने वाले जन जन तक आजादी की अहमियत को पहुंचाने के लिए तमाम दलों के साथ मिलकर काम किया वे केवल ना राष्ट्र के लिए बल्कि कश्मीर के लिए भी लड़े 35 साल की उम्र में बंगाल में उपकुलपति बन गए डॉक्टर मुखर्जी संविधान सभा के सदस्य थे बाद में वह पहले जब लोकसभा बनी उसके सदस्य बने कुछ समय मंत्रिमंडल के भी सदस्य रहे कुछ समय बाद मंत्रिमंडल से निकलकर त्यागपत्र दे दिया उसके बाद उन्होंने जनसंघ की स्थापना की जनसंघ की प्रवीण प्रवक्ता थे जब भी भाषण देते थे तो सभी लोग इकट्ठे हो जाते थे वे तर्कसंगत भाषण देते थे उनकी भाषण शैली अद्भुत थी संसद संबंधी भाषण देते थे उनके भाषा नदी प्रभावी होते थे उनके तर्क का जवाब मैं तो पंडित जवाहरलाल नेहरु दे पाते थे मैं शेख अब्दुल दे पाते थे डॉक्टर मुखर्जी अत्यंत शालीन और तर्कसंगत बातें करते थे पाकिस्तान में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से लेकर कश्मीर पर अपनी नजर जमाए रखें स्वतंत्र भारत के पहला कोई बलिदानी था वह थे डॉक्टर श्यामा मुखर्जी
*सुलोचना धनावत* ने अपने उद्बोधन में बताया डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई, 1901 को एक सभ्रांत परिवार में हुआ था। महानता के सभी गुण उन्हें विरासत में मिले थे। उनके पिता आशुतोष बाबू अपने जमाने ख्यात शिक्षाविद् थे।

डॉ. मुखर्जी ने 22 वर्ष की आयु में एमए की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा उसी वर्ष आपका विवाह भी सुधादेवी से हुआ। उनको दो पुत्र और दो पुत्रियां हुईं। वे 24 वर्ष की आयु में कोलकाता विश्वविद्यालय सीनेट के सदस्य बने। उनका ध्यान गणित की ओर विशेष था। इसके अध्ययन के लिए वे विदेश गए तथा वहां पर लंदन मैथेमेटिकल सोसायटी ने उनको सम्मानित सदस्य बनाया। वहां से लौटने के बाद डॉ. मुखर्जी ने वकालत तथा विश्वविद्यालय की सेवा में कार्यरत हो गए।

डॉ. मुखर्जी केवल तैंतीस वर्ष की आयु में कलकत्ता विश्वविद्यालय में विश्व के सबसे कम उम्र के कुलपति बनाये गए थे। इस पद को उनके पिता भी सुशोभित कर चुके थे। 1938 तक डॉ. मुखर्जी इस पद को गौरवान्वित करते रहे। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान अनेक रचनात्मक सुधार कार्य किए तथा ‘कलकत्ता एशियाटिक सोसायटी’ में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया। वे ‘इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ़ साइंस’, बंगलौर की परिषद एवं कोर्ट के सदस्य और इंटर-यूनिवर्सिटी ऑफ़ बोर्ड के चेयरमैन भी रहे।

डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने कर्मक्षेत्र के रूप में 1939 से राजनीति में भाग लिया और आजीवन इसी में लगे रहे। उन्होंने गांधीजी व कांग्रेस की नीति का विरोध किया, जिससे हिन्दुओं को हानि उठानी पड़ी थी।

एक बार आपने कहा- ‘वह दिन दूर नहीं जब गांधीजी की अहिंसावादी नीति के अंधानुसरण के फलस्वरूप समूचा बंगाल पाकिस्तान का अधिकार क्षेत्र बन जाएगा।’ उन्होंने नेहरूजी और गांधीजी की तुष्टिकरण की नीति का सदैव खुलकर विरोध किया। यही कारण था कि उनको संकुचित सांप्रदायिक विचार का द्योतक समझा जाने लगा।

जिस समय अंग्रेज़ अधिकारियों और कांग्रेस के बीच देश की स्वतंत्रता के प्रश्न पर वार्ताएँ चल रही थीं और मुस्लिम लीग देश के विभाजन की अपनी जिद पर अड़ी हुई थी, श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने इस विभाजन का बड़ा ही कड़ा विरोध किया। कुछ लोगों की मान्यता है कि आधे पंजाब और आधे बंगाल के भारत में बने रहने के पीछे डॉ. मुखर्जी के प्रयत्नों का ही सबसे बड़ा हाथ है।

उस समय जम्मू-कश्मीर का अलग झंडा और अलग संविधान था। वहाँ का मुख्यमंत्री भी प्रधानमंत्री कहा जाता था। लेकिन डॉ. मुखर्जी जम्मू-कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने जोरदार नारा भी दिया कि- एक देश में दो निशान, एक देश में दो प्रधान, एक देश में दो विधान नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगे। अगस्त, 1952 में जम्मू की विशाल रैली में उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त किया था कि “या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊँगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपना जीवन बलिदान कर दूंगा।”

अगस्त 1947 को स्वतंत्र भारत के प्रथम मंत्रिमंडल में एक गैर-कांग्रेसी मंत्री के रूप में उन्होंने वित्त मंत्रालय का काम संभाला। डॉ. मुखर्जी ने चितरंजन में रेल इंजन का कारखाना, विशाखापट्टनम में जहाज बनाने का कारखाना एवं बिहार में खाद का कारखाने स्थापित करवाए। उनके सहयोग से ही हैदराबाद निजाम को भारत में विलीन होना पड़ा।

1950 में भारत की दशा दयनीय थी। इससे डॉ. मुखर्जी के मन को गहरा आघात लगा। उनसे यह देखा न गया और भारत सरकार की अहिंसावादी नीति के फलस्वरूप मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देकर संसद में विरोधी पक्ष की भूमिका का निर्वाह करने लगे। एक ही देश में दो झंडे और दो निशान भी उनको स्वीकार नहीं थे। अतः कश्मीर का भारत में विलय के लिए डॉ. मुखर्जी ने प्रयत्न प्रारंभ कर दिए। इसके लिए उन्होंने जम्मू की प्रजा परिषद पार्टी के साथ मिलकर आंदोलन छेड़ दिया।

डॉ. मुखर्जी को देश के प्रखर नेताओं में गिना जाता था। संसद में ‘भारतीय जनसंघ’ एक छोटा दल अवश्य था, किंतु उनकी नेतृत्व क्षमता में संसद में ‘राष्ट्रीय लोकतांत्रिक दल’ का गठन हुआ था, जिसमें गणतंत्र परिषद, अकाली दल, हिन्दू महासभा एवं अनेक निर्दलीय सांसद शामिल थे। जब संसद में जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय जनसंघ को कुचलने की बात कही, तब डॉ. मुखर्जी ने कहा- “हम देश की राजनीति से इस कुचलने वाली मनोवृत्ति को कुचल देंगे।”

*उषा कलानौरीया* ने बताया अटलबिहारी वाजपेयी, वैद्य गुरुदत्त, डॉ. बर्मन और टेकचंद आदि को लेकर आपने 8 मई 1953 को जम्मू के लिए कूच किया। सीमा प्रवेश के बाद उनको जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। 40 दिन तक डॉ. मुखर्जी जेल में बंद रहे और 23 जून 1953 को जेल में उनकी रहस्यमय ढंग से मृत्यु हो गई।

*पुष्पा अग्रवाल* ने बताया अटल बिहारी वाजपेई ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी के मौत की वजह ‘नेहरु कॉन्सपिरेसी’ को बताया था। वैसे यह कोई पहली मौत नहीं थी जो रहस्यमय तरीके से हुई थी, उस दौर में ऐसे कई लोगों की मौत हुई जो आज भी रहस्य हैं। चाहे नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु हो या पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की ताशकंद में मृत्यु हो या फिर पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मृत्यु, इन सभी मौतों के पीछे एक रहस्य छुपा था, जिसे आज तक नहीं खोजा जा सका।

इन सभी मौतों को अगर आप एक कड़ी में जोड़ें तो देख पाएंगे कि यह वह लोग थे जो उस समय तत्कालीन सत्ता को चुनौती दे रहे थे या फिर एक विशेष परिवार की सत्ता को चुनौती दे रहे थे। श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत को लेकर एक बार चर्चा फिर तेज हो गई, जब 23 जून 2021 की सुबह पता चला कि कोलकाता हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई है, जिसमें मांग की गई है कि डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत कि फिर से जांच कराई जाए और उसके लिए कमीशन का गठन किया जाए। इस याचिका में इस बात का भी चर्चा है कि जब श्याम प्रसाद मुखर्जी की मौत हुई थी तब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने आरोप लगाया था कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत के पीछे तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का षड्यंत्र था।

भगवती अग्रवाल ने बताया अभी केवल जीवन के आधे ही क्षण व्यतीत हो पाए थे कि हमारी भारतीय संस्कृति के नक्षत्र अखिल भारतीय जनसंघ के संस्थापक तथा राजनीति व शिक्षा के क्षेत्र में सुविख्यात डॉ. मुखर्जी की 23 जून, 1953 को मृत्यु की घोषणा की गईं। बंगाल ने कितने ही क्रांतिकारियों को जन्म दिया है, उनमें से एक महान क्रांतिकारी डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी थे। बंगभूमि से पैदा डॉ. मुखर्जी ने अपनी प्रतिभा से समाज को चमत्कृत कर दिया था।

प्रेमलता गोयल ने आज का इतिहास बताया इतिहास में आज का दिन
। 1944 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने महात्मा गांधी को पहली बार ‘राष्ट्रपिता’ के संबोधन से पुकारा। 2002 में भारतीय उद्योगपति धीरूभाई अंबानी का निधन।2 घंटे पहले
1944 – महात्मा गांधी को पहली बार नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने राष्ट्रपिता कहा था.
1885: लुई पाश्चर ने रेबिज के टीके का सफलतापूर्वक परीक्षण किया. इस खोज ने मेडिकल की दुनिया में एक क्रांति ला दी.
1837 – समाज सुधारक रामकृष्ण गोपाल भंडारकर का जन्म हुआ था.
1935 – बौद्ध धर्म के धर्मगुरु दलाई लामा का जन्म हुआ था.
1956 – भारत सरकार में पर्यावरण, वन तथा जलवायु परिवर्तन राज्यमंत्री अनिल माधब दवे का जन्म हुआ था. आभार व्यक्त कर क्रांतिकारी नेता को शत-शत नमन करते हुए विश्व कल्याण की भावना से शांति पाठ* किया।