ओमिक्रान के 99 फीसदी मरीज महज 7 दिन में हो ठीक रहे ,फिर भी डॉक्टर क्यों कर रहे सतर्क, जानें क्यों – एक्सपर्ट व्यू
ओमिक्रान के 99 फीसदी मरीज महज 7 दिन में हो ठीक रहे ,फिर डाक्टर क्यों कर रहे सतर्क, जानें क्यों – एक्सपर्ट व्यू
नई दिल्ली । देशभर में फिर से कोरोना संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। बीते 24 घंटे में 37 हजार से ज्यादा मामले सामने आए हैं। इस दौरान 100 से अधिक कोरोना मरीजों की मृत्यु हो गई है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, पिछले 24 घंटे में कोरोना के 37,379 नए मामले दर्ज किए गए हैं और 124 लोगों की कोरोना के कारण मृत्यु हो गई है।
इस दौरान 11,007 रिकवरी हुई हैं। अभी रिकवरी रेट 98.13 फीसद है। ओमिक्रान के देश में अब तक 1892 मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें से 766 लोग ठीक हो गए हैं। अब तक सबसे ज्यादा 568 केस महाराष्ट्र से सामने आए हैं और इसके बाद 382 मामले दिल्ली में दर्ज किए गए हैं। भारत के राष्ट्रव्यापी टीकाकरण अभियान के तहत अब तक कुल 146.70 करोड़ टीके की खुराक दी जा चुकी हैं। आइए जानते हैं कि ओमिक्रान वायरस के रोकथाम के लिए सरकार इतना चिंतित क्यों है ? ओमिक्रान वायरस के कम खतरनाक होने के बावजूद इसके रोकथाम के लिए सरकार इतना ज्यादा क्यों कवायद कर रही है ? क्या भारत में चल रहा टीकाकरण ओमिक्रान पर प्रभावशाली है ? इन सारे प्रश्नों के जवाब यशोदा हास्पिटल के एमडी पीएन अरोड़ा का क्या कहना है ?
ओमिक्रान वैरिएंट डेल्टा के मुकाबले गंभीर वायरस नहीं फिर भी सतर्कता क्यों ?
डा अरोड़ा का कहना है कि ओमिक्रान वैरिएंट लंबे समय तक गले में ठहरता है। इसके चलते वह तेजी से फैलता है। इसलिए यह संक्रमण के मामले में डेल्टा वैरिएंट की तुलना में तीन गुना तेजी से फैलता है। उन्होंने कहा कि अगर हम सचेत नहीं रहे तो यह वायरस बहुत तेजी से लोगों को अपनी गिरफ्त में ले सकता है। इससे भले ही खतरा कम हो लेकिन यह बहुत तेजी से फैलेगा। डा अरोड़ा ने कहा कि यह फेफड़ों में अपनी कापी बहुत तेजी से नहीं बना पाता इसलिए मरीज गंभीर स्थिति में नहीं पहुंचता है। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि वैरिएंट बहुत तेजी से फैलता है, लेकिन डेल्टा वैरिएंट की तरह शरीर को बहुत तेजी से छोड़ भी देता है।
दुनिया में ओमिक्रान को लेकन इतनी चिंता क्यों ?
देखिए, भारत में ओमिक्रान की दस्तक 2 दिसंबर में हुई थी। एक हफ्ते में देश में कोरोना संक्रमण की दर लगभग तीन गुना बढ़ गई है। उन्होंने कहा कि वायरस के गंभीर लक्षण भले ही कम हों, लेकिन मरीजों की ज्यादा संख्या हमारे लिए खतरे की घंटी है। अनुमान के मुताबिक, तीसरी लहर की पीक के दौरान 40-60 हजार मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत पड़ सकती है। ये हमारे हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए एक नई चुनौती पैदा कर सकता है। सरकार की भी यही चिंता है। यह वैरिएंट लोगों को अपनी चपेट में तेजी से ले रहा है। कई देशों में रिकार्ड मामले सामने आ रहे हैं, उसे देखते हुए चिंता लाजमी है।
सरकार इतना टीकाकरण पर क्यों जोर दे रही है ?
टीकाकरण ने ओमिक्रान के संक्रमण को गंभीर होने से रोकने में कारगर भूमिका निभाई है। ओमिक्रान के संक्रमण से शरीर में बनी एंटीबाडी डेल्टा और पिछले अन्य वैरिएंट के खतरे से बचाती है। यह भी अच्छा संकेत है। संक्रमण के बहुत कम मामले ही गंभीर हो रहे हैं। अमेरिका ने संक्रमित लोगों के लिए क्वारंटाइन की अनिवार्यता को घटाकर पांच दिन कर दिया है। उन्होंने कहा कि अब स्थिति वर्ष 2019 जैसी नहीं हैं। अब स्थिति बदल गई है। बड़ी आबादी ने संक्रमण का सामना कर लिया है। मनुष्य के शरीर की बड़ी खूबी है कि वह पिछले संक्रमणों को याद रखता है। महामारी ने जब हमला किया था तब स्थिति किसी सूखे के मौसम में लगी जंगल की आग जैसी स्थिति थी। अब उस तरह का सूखा नहीं है। अब आग उतनी नहीं फैलेगी।
जीनोम सीक्वेंसिंग के कारण क्या ओमिक्रान की जांच प्रक्रिया जटिल है ?
डॉक्टर अरोड़ा ने कहा कि दूसरी लहर के पीक के दौरान भारत में हर रोज चार लाख के करीब नए मामले आ रहे थे। इनमें से करीब 25 हजार को अस्पताल में भर्ती करना पड़ा था। माना जा रहा है कि ओमिक्रान की वजह से रोजाना 16-20 लाख तक नए केसेज आ सकते हैं। इनमें से 40-60 हजार को अस्पताल में भर्ती करना होगा। 40-60 हजार लोगों को जब अस्पताल में भर्ती करना पड़ेगा तब तब स्थिति भयावह हो सकती है। सरकारी आंकड़ों में फिलहाल ओमिक्रान के कम मामले आ रहे हैं, लेकिन संक्रमितों की संख्या बढ़ सकती है। चूंकि वैरिएंट का पता लगाने के लिए जीनोम सीक्वेंसिंग करनी होती है और भारत में इसके लिए लैब कम हैं। इस वजह से जांच भी कम हो रही है और आंकड़े भी कम आ रहे हैं।