चैतुरगढ के पहाड़ी, जंगलों में सुलगते- धधकते आग से हो रहा भारी नुकसान, वन परिक्षेत्राधिकारी अपने कर्तव्यों की कर रहें खानापूर्ति..

चैतुरगढ के पहाड़ी, जंगलों में सुलगते- धधकते आग से हो रहा भारी नुकसान, वन परिक्षेत्राधिकारी अपने कर्तव्यों की कर रहें खानापूर्ति

 

 

कोरबा-पाली: गर्मी का मौसम शुरू हो गया है और गर्मी के शुरू होते ही जंगलों में आग लगने का सिलसिला भी शुरू हो गया है । वन की सुरक्षा की जिम्मेदारी वन विभाग पर है , इसके चलते आग से वनों की सुरक्षा के लिए वन विभाग द्वारा फायर वाचर की नियुक्ति की जाती है । साथ ही जंगलों को आग से बचाने के लिए अन्य प्रयास भी किये जाते है । लेकिन लगता है पाली परिक्षेत्राधिकारी व मातहत कर्मचारी जंगलों में लगे आग को बुझाने गंभीर नही है और इस दिशा पर अपने कर्तव्यों की खानापूर्ति कर वातानुकुलीन कक्ष में बैठ आराम फरमा रहे है । जिसके कारण जंगलों में सुलगते-धधकते आग से काफी नुकसान हो रहा है ।

कभी प्राकृतिक कारणों से जंगलों में आग लगती है तो कभी लोग अपने निहित स्वार्थों के कारण जानबूझकर आग लगा देते है । जिससे न केवल प्रकृति झुलसती है बल्कि प्रकृति के प्रति हमारे व्यवहार पर भी सवाल खड़ा होता है । भारत में वनों का सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व है । इनकी छत्रछाया में ही भारतीय सभ्यता और संस्कृति का विकास हुआ । आज भी वनों का महत्व किसी से छिपा नहीं है । सही शब्दों में कहें तो पृथ्वी पर जीवन जीने के लिए जंगलों का होना बेहद जरूरी है । इन्हीं की वजह से धरती पर बारिश और शुद्ध हवा मिलती है । सबसे जरूरी बात कि जंगल कई जानवर और पक्षियों का घर होता है । लेकिन आज जंगलों की हालत देखकर मन बिचलित होने लगता है । आज मनुष्य इतना स्वार्थी हो गया है कि वह लगातार पेडों की कटाई कर रहा है । जिसकी वजह से जंगलों उजाड़ते जा रहें है । वनभूमि कम होने का यह मुख्य कारण है । वर्तमान में गर्मी धीरे-धीरे कर बढ़ता ही जा रहा है । दूसरी ओर पीला सोना कहे जाने वाले महुआ फल भी इस बार बहुतायत में है । वनांचल क्षेत्रो में निवास करने वाले ग्रामीण महुआ फल बिनने के लिए अक्सर जंगलों में आग लगा देते है । जो आग तेजी के साथ फैलता है । चैतुरगढ के जंगलों में भी कुछ इन्ही कारणों से आग सुलगने-धधकने लगा है । जहां ग्रामीण महुआ फल के लालच में जंगलों को आग के हवाले कर रहे है । वन परिक्षेत्राधिकारी के.एन. जोगी द्वारा आग बुझाने फायर वाचर की नियुक्ति तो की गई है लेकिन वे जंगलों में झोपड़ी ताने शांत बैठे है तो वहीं अधिकारी-कर्मचारी भी इस दिशा पर अपने कर्तव्यों की महज खानापूर्ति कर वन परिक्षेत्र कार्यालय के एसी कक्ष में बैठे जंगलों को आग से बचाने व बुझाने के कागजी घोड़ा दौड़ाते हुए आराम फरमा रहे है । चैतुरगढ के जंगलों में आग लगने से जहां अनेक प्रकार के औषधीय पेड़-पौधे के साथ तेंदूपत्ते नष्ट हो रहे है तो वहीं जमीन पर रेंगने वाले जीव-जंतुओं की विभिन्न प्रजातियां भी जलकर राख हो रही है । अपने कर्तव्य पालन के लिए सरकार से मोटी वेतन लेने वाले वन अधिकारी-कर्मचारी जंगल को आग से बचाव हेतु गंभीरता के साथ कार्य करें , अन्यथा आस्ट्रेलिया के जंगल मे लगी भीषण आग की तरह काबू पाने हर प्रयास विफल होंगे ।