कोरबा: आकांक्षी जिले में शिक्षा विभाग भ्रष्टाचार में टॉप पर ,बोर्ड परीक्षाओं के परिणाम में टॉप टेन से बाहर.. ,
आकांक्षी जिला कोरबा में शिक्षा विभाग भ्रष्टाचार में टॉप पर ,बोर्ड परीक्षाओं के परिणाम में टॉप टेन से बाहर ,
अधिकारियों की कार्यशैली व नीतियों पर उठे सवाल ,कैसे सुधरेगा शिक्षा का स्तर
कोरबा: शैक्षिक व्यवस्थाओं को सुदृढ़ बनाने बिना आवश्यकता के करोड़ों के विभिन्न सामग्रियों की खरीदी कर वैश्विक आपदा कोरोनाकाल में शिक्षा विभाग भ्रष्टाचार के मामले में भले ही टॉप कर गया हो लेकिन देश के सबसे पिछड़े 110 आकांक्षी जिलों में शामिल कोरबा में शिक्षा के स्तर को ऊंचा उठाने भले सरकार एवं उसकी योजनाएं फैल रही । छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा छात्रहित में चलाई गई योजना पढ़ाई तुंहर द्वार कार्यक्रम कोरबा में पूरी तरह फेल रहा। शिक्षा विभाग की लचर व्यवस्था एवं भ्रष्टाचार की वजह से कोरोनाकाल में सरकार द्वारा चलाई गई इस योजना का लाभ कोरबा जिले के विद्यार्थियों को नहीं मिला। यही कारण है कि शनिवार को जारी बोर्ड परीक्षाओं के परिणाम में कोरबा जिला पहली बार टॉप 10 में जगह नहीं बना सका
गौरतलब हो कि कोरोना महामारी की वजह से सीजी बोर्ड की 2 वर्ष बाद परीक्षाएं ऑफलाइन हुई । बोर्ड ने अध्ययनरत विद्यार्थियों के स्कूल को परीक्षा केंद्र बनाया। बावजूद इसके कोरबा जिले के हायर सेकेंडरी की परीक्षा में 18.35 फीसदी और हाई स्कूल में 33.67 फीसदी विद्यार्थी फेल हो गए लेकिन द्वितीय स्थान पाने वाले विद्यार्थियों की संख्या इनमें भी अधिक है। परिणामों ने जिला शिक्षा विभाग की ऑनलाइन कक्षाओं सहित शिक्षा तुंहर द्वार कार्यक्रम की पोल खोल कर रख दी । शिक्षा विभाग सरकार के मंशा एवं आशानुरूप परिणाम देने में फैल रहा। परीक्षा परिणाम में संभाग स्तर पर कोरबा दूसरे स्थान पर और प्रदेश में 13वें स्थान पर रहा, कोरबा में जिला टॉपर के नाम पर गौरव पांडे ने हासिल किया 96.33% अंक सौरभ उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सीतामढ़ी के छात्र हैं जिनके पिता कोरबा पुराना बस स्टैंड मे स्थित सरस्वती शिशु मंदिर में शिक्षक हैं इसी तरह इसी प्रकार बालकों क्षेत्र में स्थित एमजीएम स्कूल में पढ़ने वाले छात्र शशांक 93% अंक हासिल किया जिले का मान बढ़ाया, बताया जा रहा है कि शशांक के पिताजी की मृत्यु हो चुकी है और उनकी माताजी एक ग्रहणी है इनके भविष्य बनाने की जिम्मेदारी अब इनके दादाजी की है जो एक सिक्योरिटी गार्ड के पद पर पदस्थ हैं
नहीं चलाई विशेष कक्षाएँ, स्कूलों के लिए बिना जरूरत डीएमएफ फंड से सामग्री खरीद कर डाले करोड़ों रुपए बर्बाद ,शिकायत टोकरी में
नाम न छापने की शर्त पर शिक्षाविदों की मानें तो इस परिणाम की मुख्य वजह जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय की अदूरदर्शी सोंच रही। विभाग ने मुख्य परीक्षा के पहले बेहतर अंक प्राप्त करने वाले प्रतिभावान परीक्षार्थीयों की प्रतिभाओं को निखारने विशेष कोचिंग कक्षाएं नहीं लगाई ।जबकि आकांक्षी जिला होने की वजह से शिक्षा ,स्वास्थ्य कृषि सेक्टर में कार्य करने के लिए डीएमएफ के अरबों रुपए के फ़ंड उपलब्ध थे। लेकिन जिला प्रशासन एवं शिक्षा विभाग ने इस फंड को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। व्यर्थ के बिना आवश्यकता के स्कूलों के नाम पर करोडों रुपए की सामग्री क्रय कर डाली। इनमें करीब 40 से 50 करोड़ रुपए की सामग्री पूर्व डीईओ सतीश पांडेय के कार्यकाल में खरीदी गई। तो नए डीईओ जी पी भारद्वाज भी पीछे नहीं रहे। इनके कार्यकाल में भी करोड़ों रुपए की विभिन्न सामग्री स्कूलों के नाम पर क्रय की जा चुकी है। जिनमें ग्रीन बोर्ड ,व्हाईट बोर्ड ,फर्नीचर ,आलमारी ,बर्तन ,खेल सामग्री ,सेनेटरी नैपकिन भस्मक मशीन से लेकर अन्य शामिल हैं।विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक कद्दू कटेगा तो सबमें बंटेगा की तर्ज पर तमाम सामाग्रियों की खरीदी में ऊपर से नीचे तक सबको कमीशन बंटा। खुद कांग्रेस के नेताओं ने शिक्षा विभाग में हुई इस करोड़ों की भ्रष्टाचार की शिकायत ईओडब्ल्यू ,एसीबी के समक्ष दर्ज कराई। पर सरकार का खुला संरक्षण होने की वजह से जांच का नतीजा सिफर रहा। भ्रष्टाचारी बेख़ौफ घूम रहे। हाल ही में शिक्षा विभाग के प्रस्ताव के बगैर 70 लाख से अधिक के खेल सामग्रियों की खरीदी की शिकायत स्वयं प्रदेश के राजस्व मंत्री ने की है ,पर अभी तक किसी भी प्रकार की कार्रवाई नजर नहीं आई।