गले तक भ्रष्टाचार में डूबा वनमंडल, “डब्ल्यूबीएम सड़क में जमकर भर्राशाही ,वन संरक्षण अधिनियम 1980 का खुला उल्लंघन….

गले तक भ्रष्टाचार में डूबा वनमंडल,”डब्ल्यूबीएम सड़क में जमकर भर्राशाही ,वन संरक्षण अधिनियम 1980 का खुला उल्लंघन….

कटघोरा : भ्रष्टाचार की चर्चाओं से गले तक डूबा कटघोरा वनमंडल आखिरकार आज भी अपने भ्रष्ट कार्यशैली से बाज नही आ सका है। आखिर इस वनमंडल में ऐसे गर्हित कार्य कैसे हो रहे? जो वन अधिनियमों को भी ताक पर रख दिया गया है। दरअसल वनपरिक्षेञ चैतमा के बगदरा से सपलवा वनमार्ग पर दुबट्टा से छिंदपहरी तक बनाए जा रहे डबल्यूबीएम सड़क में जो गिट्टी प्रयुक्त की गई है , उसे वनभूमि के पथरीले भूखंड से बड़े बड़े पत्थरो को तोड़कर इस्तेमाल किया गया है जो कि वन अधिनियम के अनुसार वन संरक्षण अधिनियम 1980 का खुल्लम खुल्ला उल्लंघन है।

गौरतलब है की वनमंडल कटघोरा अंतर्गत सभी परिक्षेत्रो में भ्रष्टाचार की बड़ी बड़ी इबादते लिखी जा चुकी हैं जो कि आज भी वनमंडल के लिए सिरदर्द बना हुआ है, लिहाजा कई निर्माणकार्यो की स्थिति बद से बदतर है । तात्कालीन डीएफओ के कार्यकाल में वनमण्डल ने जमकर सुर्खियां बटोरी है एवं निर्माणकार्यो में भर्राशाही करने कोई कसर नही छोड़ी है, जिसका खामियाजा वनमंडल लगातार भुगत रहा है।

कटघोरा वनमंडल में केवल चैतमा ही एकमात्र भ्रस्टाचार की गाथा लिखने वाला रेंज नही है बल्कि प्रायः प्रायः सभी रेन्जो मे ऐसे ही हालात बने हुई है।अगर बात करें वनमंडल के निहित वनपरिक्षेञ चैतमा की तो यहाँ दुबट्टा से छिंदपहरी तक 2 किलो मीटर के निर्माण कराए जा रहे डबल्यूबीएम सड़क के निर्माण में शासन प्रशासन के नियम कायदों को सूली पर टांग भ्रस्टाचार की मिसाल खड़ी कर दी गई है। कटघोरा वनमंडल के वन परिक्षेत्र चैतमा के रेंजर की देख-रेख में यह सारा कारनामा हुआ है जिसमे शासन के नियम कायदों को दरकिनार कर भ्रष्टाचार की गाथा लिख डाली।

जब स्थानीय लोगो से चर्चा कर इस निर्माण कार्य के संबंध जाना गया तो बेहद चौकाने वाले तथ्य सामने आए, इन्होंने बताया कि सड़क निर्माण कार्य मे जो गिट्टी प्रयोग की जा रही है उसे जंगल से खुदाई कर निकाले गए पत्थरो को निकाला गया है,और गिट्टी की साइज भी लगभग 60 से 70 mm है जिसे डब्ल्यूबीएम सड़क कार्य में लगाया गया है।

विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार वनभूमि से पत्थरो की खुदाई करना या वन क्षेत्रों में स्थाई कृषि वानिकी का अभ्यास करने के लिए केंद्रीय अनुमति आवश्यक है। बिना परमिट वनों से पत्थरो को फोड़वाकर सड़क में उपयोग हेतु लिया जाना वन अधिनियम 1980 का उलंघन हो सकता है।

वन संरक्षण अधिनियम 1980 व भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 33 तथा वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 का खुल्लमखुल्ला उलंघन किया गया है । वही अंधेर नगरी चौपट राजा की तर्ज पर कटघोरा वनमंडल शासन के नियम कायदों को चूल्हे में डाल केवल अपना उल्लू सीधा करने में लगा है।

मजे की बात यह है कि इस निर्माण कार्य को वनमंडल कार्यालय में वनमंडलाधिकारी के किसी रिश्तेदार द्वारा करवाया जा रहा है।

वनमंडल की भ्रष्ट कार्यशैली से न केवल शासन के नियमो की धज्जियां उड़ रही है बल्कि उन निर्माण कार्यो की गुणवत्ता भी सवालों के घेरे में डांडिया कर रही है जो की निर्माण के बाद कुछ माह में ही तिनके की भांति ढह जाते हैं।एक ओर राज्य सरकार जनता के लिए नई नई योजनाएं विकसित करने में लगी है ताकि जनता तक सरकार की सभी योजनाएं आसानी से पहुँच सके और वे इनका लाभ सरलता से उठा सके।लेकिन भ्रस्ट नोकरशाही से सरकार की छवि धूमिल हो रही है।

बड़ा सवाल यह है कि आखिर कब कटघोरा वनमंडल ऐसे घटिया व गुणवत्ता विहीन निर्माण कार्यो की सुध लेगा ? क्या

कटघोरा वनमंडलाधिकारी को ऐसे घटिया निर्माणकार्यो की जानकारी नही होती है? खैर वजह जो भी हो, लेकिन ग्राम पंचायत सड़क में हुए घोटालों पर विभाग किस तरह की जांच करेगा यह देखने वाली बात होगी।