कटघोरा वनमंडल: आदिवासी मजदूरों का शोषण कर रहा वन विभाग ,डीएफओ लेती है 40 % कमीशन….?
कटघोरा वनमंडल: आदिवासी मजदूरों का शोषण …सौंपा ज्ञापन …डीएफओ लेती है 40 % कमीशन….?
कोरबा: कटघोरा वनमंडल में काम निकल जाने के बाद भुगतान नहीं करने की सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। ठेकेदार और मजदूर काम करने के बाद भुगतान के लिए भटकते रहे और किसी को खुदकुशी तक करने पर मजबूर होना पड़ा तो कुछ ने न्यायालय की शरण ली।
विभाग की भ्रष्ट कार्य शैली से परेशान मजदूरों ने मोर्चा खोल दिया है दर्जनों मजदूर वनमण्डल कार्यालय पहुंच विभाग के खिलाफ डीएफओ को ज्ञापन सौंपा और तत्काल कार्यवाही की मांग की…मजदूरों ने ज्ञापन के माध्यम से बताया कि कटघोरा वन मण्डल के वन परिक्षेत्र चैतमा के अंतर्गत वन मार्ग रामाकछार से बगधरा छिदपानी होते हुये सड़क निर्माण वन विभाग के कर्मचारियों एवं उनके ठेकेदार पप्पू अग्रवाल पाली के द्वारा कराया जा रहा है।
ठेकेदार से पूछने पर उसके द्वारा कहा जाता है कि इस कार्य में 40 प्रतिशत कमीशन तो अकेले डी.एफ.ओ. को देना पड़ता है। इस लिये तुम लोगो को एक ट्रेक्टर बोल्डर नूमा गिटटी तोडने की मजदूरी 1 हजार रूपये से अधिक नही दिया जा सकता, पहले भी तो 900/- रूपये प्रति ट्रैक्टर के हिसाब से पत्थर तोडाई किये हो, महोदया जी दो मजदूर मिलकर तीन दिन तक पसीना बहाते है तब एक ट्रेक्टर बोल्डर तोड़ पाते है इस प्रकार हम लोगो को मात्र 170 रूपये रोजी ही पड़ रहा है, जिसके एवज में कुछ नगद तथा 25 रूपये प्रति किलो के हिसाब से चावल दिया गया है। शेष मजदूरी की रकम मागने पर डी.एफ.ओ आफिस चेक कटने के बाद दिया जायेगा कहा जाता है।
बन रहे डब्ल्यू.बी. एम. सडक कार्य में मूरूम भी सड़क के दोनो और तथा जंगल से जे.सी.बी मशीन से खोद कर डाला जा रहा है। मिटटी का कार्य तो हो ही नही रहा है तथा क्रेशर गिटटी तो नाम मात्र का भी नही आया है, हम मजदूरों का काम मशीन से कराया जा रहा है, जिससे जंगल के हरे भरे पेड़ भी नष्ट हो रहे है। पूर्व में भी किये डब्ल्यू.बी.एम. के कार्य में यही रवईया अपनाया गया। जिसका नतीजा बरसात में रोड बह गया और वर्तमान में चलने के स्थिति में नही है । इस लिये सही तरीके से प्राकलन के अनुसार ही रोड का निर्माण कराये ताकि शासन के पैसे का सदुपयोग हो सके।
पूरे मामले के इस बात को इनकार नही किया जा सकता की विभाग एवम् ठेकेदार की मिलीभगत से इस भ्रष्टाचार को अंजाम दिया जा रहा है, विभाग के अधिकारी अपने कमीशन के चक्कर में रहते है ठेकेदार अपने पैसों के चक्कर में रहते है, इसका भुगतान गरीब मजदूरों को करना पड़ता है…वही एक उच्च पद पर आसीन आईएफएस डीएफओ पर इस तरह का गंभीर आरोप पूरे वन विभाग की कार्य शैली पर सवाल खड़े करता है।