कटघोरा/पसान: मध्यप्रदेश के मजदूरों की मजदूरी खा गए छत्तीसगढ के रेंजर और डिप्टी रेंजर, 8 दिन से कार्यालय के सामने भूखे धरने पर बैठे दर्जनों मजदूर, परिवार सहित आत्महत्या की चेतावनी,

कोरबा पसान में दर्जनों मजदूर अपने परिवार और बोरिया-बिस्तर साथ लेकर वन परिक्षेत्र कार्यालय में हफ्तों से धरने पर बैठे हुए है । इस दौरान उन्होंने वन विभाग के अधिकारियों पर मजदूरी न देने का आरोप लगाया। मजदूरों ने पैसे न मिलने के कारण परिवार सहित आत्महत्या की चेतावनी दी है, मजदूर अपने परिवार सहित करीब 8 दिनों से कार्यालय के सामने धरने पर बैठे हुए है,

कोरबा। कोरबा जिले के कटघोरा वन मंडल अंतर्गत आने वाले पसान वन परिक्षेत्र के ग्राम पंचायत पिपरिया सीपतपारा में संचित रोपणी पौधारोपण के घोटाले को रफा दफा करने के लिए पौधारोपण की लीपापोती कराई जा रही है। अभी पौधों के रोपण में लगाए गए एमपी के मजदूरों को मजदूरी तक नहीं दी गई है और वे फांसी पर लटकने की बात कर रहे हैं।

वर्ष-2021 में कैम्पा मद से कराए गए करोड़ों की लागत से सिंचित रोपणी पौधारोपण में घोटाले की जांच हो रही है। 265 हेक्टेयर क्षेत्रफल में कराए गए पौधारोपण में से जहां महज 20 प्रतिशत पौधे जीवित बचे हैं वहीं 135 हेक्टेयर क्षेत्रफल मिसिंग भूमि है अर्थात यह जमीन है ही नहीं। विभागीय सूत्रों की मानें तो 135 हेक्टेयर क्षेत्रफल भूमि नहीं होने के बावजूद इस पर पौधारोपण दर्शाया गया है। इन पौधों को सींचने के लिए वर्ष-2022 में पार्ट-1 के 150 हेक्टेयर क्षेत्रफल के पौधों हेतु 12 बोर तथा पार्ट-2 के 115 हेक्टेयर क्षेत्रफल में रोपित पौधों हेतु 9 बोर खनन कराए गए। आश्चर्य की बात यह है कि उक्त रोपणी क्षेत्र में बिजली नहीं है। बिना बिजली सुविधा के 21 बोर का खनन करा दिया गया। बोर खनन कराने के बाद टेस्टिंग के लिए जनरेटर का सहारा लिया गया और सब कुछ ओके बताकर, जियो टैगिंग में सब कुछ सही दिखाकर करोड़ों रुपए आहरित कर लिए गए। इन राशि की कहीं न कहीं बंदरबांट हुई है। पौधोरोपण में घपला हुआ है तो बोर के औचित्य पर भी सवाल उठे हैं।

इस मामले में डीएफओ कुमार निशांत के द्वारा जांच के आदेश जुलाई माह में दिए गए हैं और 7 दिन के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करना था। जांच टीम ने क्या पाया, यह आज तक सार्वजनिक नहीं हो सका है और ना ही विभागीय तौर पर यह बात सामने लाई जा रही है कि जांच में क्या पाया? वैसे सूत्र बताते हैं की जांच की गति धीमी रखी गई है, इधर दूसरी तरफ पिपरिया सीपतपारा में अगस्त महीने में पौधारोपण कराने के लिए रेंजर दहायत के द्वारा बाहर मध्य प्रदेश के उमरिया से मजदूर बुलवाए गए हैं। तर्क दिया जा रहा है कि स्थानीय स्तर पर कोई मजदूर पौधारोपण कार्य के लिए नहीं मिल रहे हैं इसलिए मध्य प्रदेश से मजदूर बुलवाकर 115 हेक्टेयर क्षेत्र में गड्ढे खुदवाए गए और पौधारोपण किया गया है। अब सवाल यह भी है कि जब पिछले साल ही पौधों का रोपण विशाल क्षेत्रफल में कराया गया तो फिर अभी पौधारोपण की आवश्यकता ठीक बरसात के मौसम में क्यों पड़ गई?.चर्चा है कि सीपतपारा पिपरिया में हुए पौधों के घोटाला तथा मिसिंग एरिया में भी पौधारोपण बताकर करोड़ों रुपए गड़प करने के मामले की जांच में लीपापोती कराने की मंशा से व सब ओके दिखाने के लिए यह पौधरोपण कराया गया है लेकिन इसमें बुलवाए गए मजदूरों को वेतन का भुगतान नहीं हो पाया है। इन मजदूरों ने रेंज कार्यालय में 8 दिन से डेरा डाल रखा है

भूखे प्यासे रह कर अपना वेतन मांगने के लिए यह लोग रेंज अधिकारियों का चक्कर काट रहे हैं और रेंजर से लेकर डिप्टी रेंजर इन्हें घुमा रहे हैं। एक कर्मचारी ने तो कोरे कागज में लिखकर सील साइन करके दे दिया है कि भुगतान कर दिया जाएगा लेकिन इसकी समय अवधि भी निकल जाने के बाद पैसा नहीं मिलने से मजदूर परेशान हैं। इन्होंने यहां तक कह दिया है कि पैसा नहीं मिला तो वह रेंज ऑफिस के सामने ही फांसी लगाकर जान दे देंगे और यह बात प्रशासन तक पहुंच गई है।

यह बेहद चिंताजनक है कि वन मंडल क्षेत्र में डिप्टी रेंजर और रेंजर स्तर पर कर्मचारी लगाकर काम तो कराए जाते हैं लेकिन उनका वेतन मेहनताना देने की बारी आती है तो उन्हें महीने- महीने साल-साल भर और कई साल तक लटकाया जाता है। कहा जाता है कि जब पैसा आएगा तब मिल जाएगा, तो क्या वन विभाग के अधिकारी बिना किसी योजना और आर्थिक प्लानिंग के ही मजदूर लगवा कर काम कराते हैं। आखिर मजदूरों को काम पर रखने की व्यवस्था क्या है, क्या इन सब की जानकारी एसडीओ या डीएफओ को नहीं होती कि किस एरिया में कितने मजदूर किस कार्य के लिए किसके द्वारा लगाए गए हैं,और यदि जानकारी रहती है तो उनके वेतन भुगतान के संबंध में भी वे उदासीता क्यों बरतते हैं। अपना बकाया वेतन राशि लेने के लिए मध्य प्रदेश से बुलाए गए इन मजदूरों को सिर्फ उनके आने का खर्च और खाना खर्चा दिया गया है।