छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना प्रदेश मंत्री दिलीप मिरी के द्वारा कोरबा के ग्राम-रिसदी के अधिग्रहित भूमि को किसानों को वापस करने व इस भूमि में अवैधानिक रूप से किये गए प्रशासनिक कार्य को रोकते हुए,संलिप्त अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही की मांग*
कोरबा – जैसा कि आप सभी जानते है सोना उतना महंगा नही जितनी कि कोरबा की जमीन और यही वजह है कि बड़े-बड़े लोगो की नजर खाली पड़े भू-भाग पर सबसे पहले पड़ती है,चाहे वो सरकारी हो, आदिवासियों की हो या पूर्व में अधिग्रहित की हुई, प्रसाशनिक लोगो से सांठ-गांठ कर हर जमीन की जानकारी जुटाना फिर उस जमीन हड़पना कोई नई बात नही है,आज एक गरीब परिवार 1 कमरे में रहने के लिए कहीं प्लास्टिक भी तानता है तो अगले ही पल उसे ढहा दिया जाता है,परन्तु प्रशाशनिक आड़ में जो कब्जे कोरबा जिले में हुए है वो किसी से छुपे नही है।
कुछ ऐसा ही मामला फिर प्रकाश मे आया है,जिसे छत्तीसगढिया क्रांति सेना के पदाधिकारियों ने उठाया है, इस पूरे मामले को हम उस पत्र के माध्यम से समझते है जिसे छत्तीसगढिया क्रांति सेना के प्रदेश मंत्री दिलीप मिरी ने छत्तीसगढ़ प्रदेश के माननीय राज्यपाल व मुख्यमंत्री को लिखा है। जिसमे किसानों को उन्ही की जमीन से किस तरह से प्रसाशन को आड़ लेकर उन्हें बेदखल कर किया जा रहा है,और ऐसा करने में क्या क्या प्रपंच हो रहे है, पूरी जानकारी इस पत्र से स्पष्ट हो जाती है।
पढ़ें शिकायती पत्र..
प्रति,
1) माननीय राज्यपाल जी,
राज भवन,रायपुर छत्तीसगढ़
2)माननीय मुख्यमंत्री जी
छत्तीसगढ़ शासन,रायपुर
- विषय:- जिला-कोरबा के ग्राम-रिसदी के अधिग्रहित भूमि को किसानों को वापस करने व इस भूमि में अवैधानिक रूप से किये गए प्रशासनिक कार्य को रोकते हुए,संलिप्त अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही बाबत।
माननीय,
विषय अंतर्गत लेख है कि जिला कोरबा में ग्राम रिसदी स्थित है,जिस पर वर्ष 1994 मैं देबू पावर प्लांट के स्थापना करने हेतु प्रस्ताव हुआ था, जिसके लिए राज्य शासन मध्यप्रदेश की सरकार ने वहां की लगभग 300 एकड़ भूमियों को अधिकृत करके देबू पावर प्लांट को पावर प्लांट स्थापित करने की अनुमति दी थी,परंतु कालांतर में देबू कंपनी जो साउथ कोरिया कंपनी की है जिसके दिवालिया होने की वजह से पावर प्लांट तय समय सीमा पर स्थापित नहीं हो पाया,और देबू पावर प्लांट के साथ मूल किसानों के बीच एक करार भी हुआ था,जिसमें अधिग्रहित भूमि की एवज में प्रत्येक प्रभावित परिवार को उनकी क्षमता के अनुसार नौकरी देने का प्रावधान किया गया था, साथ ही उस क्षेत्र में विकास कार्य हेतु स्कूल,चिकित्सा व अन्य मूलभूत सुविधाएं दिए जाने का इकरार किया गया था, जिसपर भूमि अधिग्रहण सन 1998 के आसपास हुआ था, परंतु 25 साल के बाद भी तय समय सीमा जो लगभग 7 साल के अंतर्गत पूरा कर लेना था,लेकिन 7 साल के बाद भी उक्त कंपनी द्वारा किसी प्रकार का निर्माण उस भूमि पर नहीं कराया गया, जिससे कि वहां के किसानों को अपने अधिकार से वंचित रहना पड़ा,उद्योग स्थापित ना होने के कारण उन्हें ठगा महसूस हुआ,और इस तरह उनका आर्थिक,मानशिक शोषण हुआ है,तय समय सीमा के बाद लगातार वह उस जमीन पर काबिज है,और अपना कृषि कार्य करते आ रहे है, परंतु दिनांक 15 मई 2021 को अचानक जिला प्रशासन कोरबा के राजस्व अमले द्वारा गैर कानूनी रूप से सीमांकन किया गया,जिसमें चार चार जेसीबी का उपयोग किया गया साथ ही लॉकडॉन का भी उल्लंघन करते हुए वहां जमीनों की खुदाई की गई साथ ही कई वृक्ष को क्षतिग्रस्त कर उखाड़ के फेंक दिया गया,यह पूरी तरह वहां के प्रशासन की लापरवाही और कहीं ना कहीं अफसरशाही हावी हुआ है जिसके कारण यह स्थिति निर्मित हुई है,दिनांक 15 मई 2021 को किसानों व जिला प्रशासन के राजस्व अमले के मध्य विवाद की स्थिति निर्मित उत्पन्न हो गई थी, जिस पर बलपूर्वक जिला प्रशासन के राजस्व अमले द्वारा जबरन 16/5/2021 तारीख को भी उक्त भूमि में गैरकानूनी व अवैधानिक रूप से जमीन में मिट्टी कटिंग व मिट्टी फिलिंग का काम करते हुए पेड़ की अवैध कटाई किया गया,जो पर्यावरण नियम का उल्लंघन भी है,साथ ही लॉकडाउन के नियम का उल्लंघन है,क्योंकि आज पूरे प्रदेश व पूरे राष्ट्र में वैश्विक महामारी कोरोना का प्रकोप है,जिसके वजह से प्रदेश में 31 मई 2021 तक लॉगडाउन राज्य सरकार ने निर्धारित किया है,लेकिन इस लॉकडॉन को अवसर में बदलते हुए जिला प्रशासन कोरबा के राजस्व अमले द्वारा चंद नेताओं की जी हुजूरी करते हुए यह कृत्य किया गया है,जिससे कि छत्तीसगढ़िया मूलनिवासी का शोषण व अधिकार का हनन हुआ है,साथ ही पेसा कानून का उल्लंघन है, आपको बताना चाहेंगे कि वर्तमान स्थिति में माननीय उच्च न्यायालय बिलासपुर 10 मई से 5 जून तक ग्रीष्मकालीन छुट्टी पर है, यह सीमांकन लॉकडाउन के पूर्व या लॉकडाउन के बाद किया जाता था,तो अच्छा होता,लेकिन लॉगडाउन में यह सीमांकन किया है जो अनुचित और गैर कानूनी है,क्योंकि संपूर्ण कोरबा जिला भारतीय संविधान की पांचवी अनुसूची में है,और यहां पेशा एक्ट 1996 लागू है,इन सभी को दरकिनार करते हुए जिला प्रशासन कोरबा के अधिकारियों द्वारा जानबूझकर नेताओं और पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए यह सीमांकन किया गया है,और चार जेसीबी का प्रयोग किया गया है,जहाँ तक हमारी जानकारी है सीमांकन की प्रक्रिया में इतनी अधिक मशीनरी की आवश्यकता नहीं होती है,लेकिन यह पूरी तरह से सुनियोजित कृत्य है जो छत्तीसगढ़िया मूलनिवासी का शोषण है।25 साल तक छत्तीसगढिया प्रभावित परिवार अपने रोजगार व मूलभूत सुविधा से वंचित रहा है,और आज इनको बेदखल किया जा रहा,जिसमे आज भी जमीन मूल किसान के नाम से राजस्व में दर्ज है।
अतः आपसे निवेदन है कि जिस तरह से छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र के आसपास टाटा कंपनी द्वारा अपना उद्योग स्थापित करने के लिए जमीन अधिगृहित किया गया था, परंतु तय सीमा में उद्योग स्थापित नहीं हो पाया,ऐसी स्थिति में राज्य सरकार ने उक्त जमीनों को उनके मूल खातेदार किसानों को वापस किया गया था,नरुवा,गरुवा,घुरवा अऊ बाड़ी का वादा करके 15 साल बाद कांग्रेस की सरकार सत्ता में वापस आयी और आज छत्तीसगढ़िया लोगों का ही बाड़ी उजाड़ा जा रहा है,इस जमीनों को राज्य सरकार मूल किसानों को वापस कर मूल छत्तीसगढ़िया के हितों को संरक्षित करें,और ऐसे असंवैधानिक कृत्य करने वाले अधिकारियों के विरुद्ध एक विशेष जांच दल गठित कर जांच किया जाए ताकि भूस्वामी किसानों को न्याय मिल सके,अगर राज्य सरकार समय रहते इस ओर ध्यान केंद्रित नहीं किया,तो निश्चित ही उस क्षेत्र में बड़े स्तर में जन आक्रोश उत्पन्न होगा,जिसका खामियाजा आने वाले चुनाव में वर्तमान की सरकार को भुगतना पड़ सकता है, और छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना भी छत्तीसगढ़िया के अधिकार को संरक्षित करने के लिए कटिबद्ध है,आगे आने वाले समय में वहां के पीड़ित किसानों से मिलकर कंधे से कंधा मिलाकर सड़क की लड़ाई करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा,जिसकी संपूर्ण जवाबदारी जिला प्रशासन कोरबा और राज्य सरकार की होगी ।
प्रतिलिपि:-
1)श्रीमान अध्यक्ष राजस्व मंडल आयोग बिलासपुर (छ.ग)
2)श्रीमान कलेक्टर जी,जिला कोरबा,(छ.ग)
3)श्रीमान पुलिस अधीक्षक जी,जिला कोरबा,(छ.ग)
4)श्रीमान अनुविभागीय अधिकारी रा(0) कोरबा,जिला कोरबा,(छ.ग)
5)श्रीमान चौंकी प्रभारी रामपुर, जिला कोरबा,(छ.ग)
आवेदक
दिलीप मिरी
प्रदेश मंत्री
छत्तीसगढिया क्रांति सेना
Mo- 9302296132