छत्तीसगढ़ के फेफड़ो पर गहराते संकट, मानवीय संवेदनाओं को झकझोर देने वाली तस्वीरें…पढ़िए हसदेव अरण्य के दर्द की पूरी कहानी…

छत्तीसगढ़ के फेफड़ो पर गहराते संकट, मानवीय संवेदनाओं को झकझोर देने वाली तस्वीरें…पढ़िए हसदेव अरण्य के दर्द की पूरी कहानी…

 

 

पिछले दिनों हसदेव में वनों की कटाई शुरु हुई तो सोशल मीडिया पर कई मानवीय संवेदनाओं को झकझोर देने वाली तस्वीरें वायरल हुईं. लिहाजा फिलहाल तो वनों की कटाई रोक दी गई है, लेकिन क्या वर्षों पुराने इन वनों को अस्तित्व कब तक सुरक्षित रहेगा इसका फैसला अब हाईकोर्ट करेगा?

सरगुजा: बीते कुछ दिनों से प्रदेश के हसदेव अरण्य को लेकर देशभर में चर्चा बनी हुई है. मुद्दा पर्यावरण संपदाओं से अच्छादित इस वन में वनों की कटाई और खनन से जुड़ा है, जिसे लेकर स्थानीय ग्रामीणों भारी रोष है. पिछले दिनों हसदेव में वनों की कटाई शुरु हुई तो सोशल मीडिया पर कई मानवीय संवेदनाओं को झकझोर देने वाली तस्वीरें वायरल हुईं. ग्रामीणों समेत कई सामाजिक व प्रकृति प्रेमी संस्थाएं इन दिनों अंधाधुंध हो रही इन वनों की कटाई को लेकर विरोध प्रदर्शन व धरने दे रही हैं. लिहाजा फिलहाल तो वनों की कटाई रोक दी गई है, लेकिन क्या वर्षों पुराने इन वनों को अस्तित्व कब तक सुरक्षित रहेगा इसका फैसला अब हाईकोर्ट करेगा. आज हम आपको हसदेव अरण्य, इसमें वृक्षों की कटाई और इससे जुड़े पूरे मामले पर हो रहे विवाद पर विस्तृत से बताएंगे.

पहले जानते हैं हसदेव अरण्य

छत्तीसगढ़ का हसदेव अरण्य उत्तरी कोरबा, दक्षिणी सरगुजा व सूरजपुर जिले में स्थित एक विशाल व समृद्ध वन क्षेत्र है जो जैव-विविधता से परिपूर्ण हसदेव नदी और उस पर बने मिनीमाता बांगो बांध का केचमेंट है जो जांजगीर-चाम्पा, कोरबा, बिलासपुर जिले के नागरिकों और खेतो की प्यास बुझाता है. यह वन क्षेत्र सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नही बल्कि मध्य भारत का एक समृद्ध वन है, जो मध्य प्रदेश के कान्हा राष्ट्रीय उद्यान के जंगलो को झारखण्ड के पलामू के जंगलो से जोड़ता है. यह हाथी जैसे 25 अन्य महत्वपूर्ण वन्य प्राणियों का रहवास और उनके आवाजाही के रास्ते का भी वन क्षेत्र है.

वनों की कटाई और खनन को लेकर, नो-गो हसदेव अरण्य

वर्ष 2010 में स्वयं केन्द्रीय वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने सम्पूर्ण हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन को प्रतिबंधित रखते हुए नो-गो (No – Go) क्षेत्र घोषित किया था. कॉर्पोरेट के दवाब में इसी मंत्रालय के वन सलाहकार समिति (FAC) ने खनन की अनुमति नहीं देने के निर्णय से विपरीत जाकर परसा ईस्ट और केते बासन कोयला खनन परियोजना को वन स्वीकृति दी थी, जिसे वर्ष 2014 में ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने निरस्त भी कर दिया. हाल ही में Wil (भारतीय वन्य जीव संस्थान) की रिपोर्ट सार्वजनिक हुई जिसमें बहुत ही स्पष्ट रूप से लिखा है कि हसदेव अरण्य समृद्ध, जैवविविधता से परिपूर्ण वन क्षेत्र है. इसमें कई विलुप्त प्राय वन्यप्राणी आज भी मौजूद हैं. वर्तमान संचालित परसा ईस्ट केते बासन कोल ब्लॉक को बहुत ही नियंत्रित तरीके से खनन करते हुए शेष सम्पूर्ण हसदेव अरण्य क्षेत्र को तत्काल नो गो घोषित किया जाये. इस रिपोर्ट में एक चेतवानी भी दी गई है कि यदि इस क्षेत्र में किसी भी खनन परियोजना को स्वीकृति दी गई तो मानव हाथी संघर्ष की स्थिति को संभालना लगभग नामुमकिन होगा. जिसके परिणाम प्रदेश में देखने में भी आ रहे है. आए दिन हाथियों के दल रिहायशी इलाकों में घुसने लगे है. जिससे भारी मात्रा में जान-माल की हानि भी हो रही है.

विकास के नाम पर विनाश का पर्याय बनती वर्तमान स्थिति

दुखद रूप से हसदेव अरण्य क्षेत्र की समृद्धत्ता, पर्यावरणीय महत्व और उसकी आवश्यकता को समझते हुए भी केंद्र और राज्य सरकार ने मिलकर निजी कम्पनी व अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए इसका विनाश कर रहीं है. हाल ही में नए परसा कोल ब्लॉक और पूर्व संचालित परसा ईस्ट केते बासेन कोल ब्लॉक के दूसरे चरण में खनन की अनुमति के लिए छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा दी गई अंतिम वन स्वीकृति से लगभग 6 हजार एकड़ क्षेत्रफल में 4 लाख 50 हजार पेड़ों को काटा जाना तय हुआ है, जिसे लेकर वनों को चिंहित भी किया जा चुका है और जंगल के कुछ हिस्सों में कटाई शुरु भी कर दी गई है.

मामले में हाई कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद इस कटाई पर रोक लगा दी गई है, आपको बता दें कि परसा कोल ब्लॉक भूमि अधिग्रहण पर स्टे लगाने दायर याचिकाओं पर हाईकोर्ट में बहस पूरी हो गई है. फिलहाल हाईकोर्ट ने आदेश सुरक्षित रखा गया है. मामले की सुनवाई चीफ़ जस्टिस और जस्टिस सामंत की युगलपीठ में हुई. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि हसदेव अरण्य में साल के वृक्षों का प्राकृतिक जंगल हैं जिनका आज तक पौधा रोपण संभव नहीं हो सका है. इस स्थिती में यदि एक बार ये जंगल काट दिए जाएँ तो इंसानों द्वारा उन्हें दोबारा नहीं उगाया जा सकता.

जानिए मामले से जुड़े कानूनी पक्ष

हसदेव अरण्य को बचाने के लिए एक दशक से चल रहे आन्दोलन में आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों को हमेशा नज़रंदाज़ किया गया है. हसदेव अरण्य संविधान की पांचवी अनुसूची क्षेत्र है. अनुसूचित क्षेत्रों में ग्रामसभाओं को अपने जल,जंगल, जमीन, आजीविका और संस्कृति की रक्षा करने का संवैधानिक अधिकार है.

भारतीय संसद के बनाए गए पेसा अधिनियम 1996 और वनाधिकार मान्यता कानून 2006

ग्राम सभाओं के अधिकारों को और अधिक शक्ति प्रदान करते हैं. विवाद में अभी परसा कोल ब्लॉक के लिए बेयरिंग एक्ट 1957 के तहत जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा है, वो भी बिना ग्रामसभा सहमती के. आरोप है कि इसी कोल ब्लॉक की वन स्वीकृति भी ग्रामसभा का फर्जी प्रस्ताव बनाकर हासिल की गई है. बिना सहमती के भूमि अधिग्रहण और वन स्वीकृति को निरस्त करने हसदेव अरण्य के ग्रामीणों ने वर्ष 2019 में ग्राम फतेहपुर में 75 दिनों तक धरना प्रदर्शन किया, लेकिन राज्य सरकार ने कोई संज्ञान नहीं लिया. अक्टूबर 2021 में हसदेव से रायपुर तक 300 किलोमीटर पैदल मार्च किया गया. स्वयं मुख्यमंत्री से मुलाकात और कई बार ज्ञापन सौंपने के बाद भी आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई बल्कि इसके विपरीत अडानी कम्पनी के खनन कार्य अवैध और गैरकानूनी रूप से शुरू करवाया जा रहा है. आपको बता दें मामले को लेकर ग्रामीणों ने राज्यपाल अनुसुईया उईके से भी मुलकात की थी.

विस्थापन और पर्यावरण विनाश के खिलाफ मुहिम जारी

हसदेव अरण्य के इस विनाश के खिलाफ 2 मार्च से पुनः यहां निवासरत आदिवासी अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन कर रहे हैं. शांति पूर्ण आन्दोलन के बावजूद 10 लोगों पर आपराधिक मुकदमे दर्ज किए गए हैं. अपने इन्हीं संवैधानिक अधिकारों के तहत वर्ष 2015 में हसदेव अरण्य क्षेत्र की 20 ग्रामसभाओं ने विधिवत प्रस्ताव पारित करके केंद्र सरकार को प्रेषित किए थे कि उनके क्षेत्र में किसी भी कोल ब्लॉक का आंवटन/ नीलामी ना किया जाये. बावजूद सरकार ने हसदेव अरण्य क्षेत्र में 7 कोल ब्लॉक का आवंटन राज्य सरकारों की कंपनियों को कर दिया

राज्य सरकारों ने इन कोल ब्लाकों को विकसित करने और खनन (MDO) के नाम पर एक निजी कंपनी को सौंप दिए. साथ ही इन राज्य सरकारों ने नागरिकों के हितों को ताक पर रखकर बाजार मूल्य से भी अधिक दरों पर इस कंपनी से कोयला लेने के अनुबंध भी किए है. ग्रामसभाओं ने कोल ब्लॉक आवंटन का विरोध व आन्दोलन के बाद जून 2015 में कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी छत्तीसगढ़ कांग्रेस की पूरी टीम के साथ पूर्व चर्चा और सहमती के बाद हमारे गाँव मदनपुर आये थे. यहां उन्होंने चौपाल लगाकर समस्त आदिवासियों को आश्वस्त किया था कि उनकी पार्टी हमारे इस संघर्ष में साथ में खड़ी है और जंगल जमीन का विनाश होने नहीं देगी. परन्तु कांग्रेस पार्टी आज राज्य में सत्ता में होने के बाद उनके उस वादे से मुकरते हुए हसदेव के आदिवासियों से उनके जंगल जमीन को छीनती जा रही हैं.

फिर शुरु हुआ चिपको आंदोलन

वनों की सुरक्षा के लिए उनसे लिपट कर उन्हें काटने से बचाने का यह एक पुराना व कारगर उपाय है. सरगुजा जिले उदयपुर ब्लॉक के परसा कोल खदान के दूसरे फेस की अनुमति मिलने के बाद से 300 से अधिक पेड़ो की कटाई की जा चुकी है, जिसका विरोध में 2 मार्च से ग्राम हरिहरपुर में जारी ग्रामीणों का आंदोलन लगातार बढ़ता जा रहा है. ग्रामीणों ने विश्व पृथ्वी दिवस के अवसर पर पेड़ों को बचाने के लिए उसी कारगर उपाय को अपनाते हुए चिपको आंदोलन शुरू किया है. जिसमे ग्रामीण महिलाएं सुबह से जंगल की ओर पहुंचकर पेड़ों को पकड़ कर खड़ी हो रही हैं. वहीं ग्रामीण महिलाएं पेड़ों की रक्षा के लिए कृत संकल्पित दिख रही हैं. लगभग 150 की संख्या में महिलाएं साल्ही के महादेव डाँड़ जंगल में चिपको आंदोलन भी कर रही है. आपको बता दें इस आंदोलन का समर्थन भाजपा समेत अन्य दल भी कर रहे हैं