मुख्यमंत्री जी…राजस्व अधिकारी शेषनारायण जायसवाल के कार्यों की जाँच सूक्ष्मता से करवाएं और षड्यंत्रकारियों को भेजें जेल…
मुख्यमंत्री जी…राजस्व अधिकारी शेषनारायण जायसवाल के कार्यों की जाँच सूक्ष्मता से करवाएं और षड्यंत्रकारियों को भेजें जेल…
बिलासपुर: भू-माफिया को लाभ पहुंचाने के लिए सरकार को चूना लगाने वाले बदमाश किस्म के राजस्व अधिकारियों पर कठोर कार्यवाही नहीं होने के कारण इनके हौसले दिन पर दिन बुलंद होते जा रहे हैं. ये हम नहीं जिले की सरकारी जमीनों में लगातार हो रही गड़बड़ियां बयान कर रही हैं.
इससे समझ में आता है कि सरकार के पास इन जैसे बदमाश किस्म के राजस्व अधिकारियों पर अंकुश लगाने की कोई ठोस प्लानिंग नहीं है. अगर होती तो शायद बिलासपुर तहसील के तत्कालीन अतिरिक्त तहसीलदार शेष नारायण जायसवाल अपने कार्यकाल में ग्राम सेंदरी के खसरा नँबर 2231(रकबा 7.38 एकड़) की भूमि का नामांतरण जेठू चौहान के नाम पर नहीं करते.
न्यूज़ हब इनसाइट के पास उक्त जमीन से संबन्धित जो दस्तावेज हैं, उसके अनुसार, मुंशी पिता फुलेश को शासन के आदेश दिनाँक 25 मार्च 1972 को खसरा नँबर 2231 की भूमि प्राप्त हुई है.
वहीं, जब वर्ष 2020 को दुआसा बाई नाम की महिला इस भूमि के फौती नामांतरण के लिए आवेदन लगाती है तो उस समय सरपंच रहे अक्तिराम भारद्वाज और ग्रामवासियों ने संबंधित राजस्व अधिकारियों के सामने यह बयान दिया कि मुंशी नामक व्यक्ति को कोई नहीं जानता है और ना ही वो यहाँ पर निवास किया है. उक्त खसरे(2231) की शासकीय भूमि उसे कैसे मिली, जानकारी नहीं है.
जैसे ही रमतला निवासी गेंदराम चौहान का बेटा जेठूराम के द्वारा 2 मार्च 2020 को उक्त खसरे की भूमि को वसीयत के आधार पर नामांतरण का आवेदन अतिरिक्त तहसीलदार शेषनारायण जायसवाल के समक्ष प्रस्तुत करता है, तो उस समय वसीयत के समर्थन में हरिश्चंद्र सोनी व अक्तिराम भारद्वाज गवाही देते हैं.इससे अक्तिराम का संदेह के दायरे में आना लाजमी है.
हमारे पास जो दस्तावेज हैं उसे देखने से साफ जाहिर होता है कि भूमि को कूटरचना कर आवेदक द्वारा संबंधित राजस्व अधिकारी के सहयोग से अपने नाम करने की साजिश की और वो सफल भी रहा, पर बाद में उक्त भूमि को जेठूराम से वापस लेकर फिर से मुंशी के नाम पर दर्ज कर दी गई है.
जेठूराम द्वारा वसीयत के आधार पर नामांतरण के लिए शेषनारायण के समक्ष जो वसीयत एवँ मृत्यु के संबंध में दस्तावेजों को पेश किया गया है, वो संदिग्ध है. विशेषज्ञ के अनुसार, वसीयत का स्टाम्प पेपर और मृत्यु जन्म प्रमाण पत्र कूटरचना करके तैयार किया गया है, जो कि अपराध की श्रेणी में आता है.
प्रकाश सिंह ने बताया कि जेठूराम के द्वारा वसीयत का जो स्टाम्प पेपर प्रस्तुत किया गया है उसके पीछे में सेंदरी बिलासपुर(छ.ग.) लिखा हुआ था, जिसे काट कर बाद में मध्यप्रदेश किया गया है जबकि 1982 में छत्तीसगढ़ बना ही नहीं था तो स्टाम्प विक्रेता छतीसगढ़ कैसे लिख सकता है. इससे साफ जाहिर होता है कि स्टाम्प पेपर में कांट-छांट किया गया है, जो कि गलत है.
अधिवक्ता प्रकाश सिंह के अनुसार, वसीयत के विवाद की स्थिति में राजस्व न्यायालय को उसे सुनने की अधिकारिता नहीं है. इस तरह के मामले की सुनवाई सिविल कोर्ट में होती है.
प्रकाश ने बताया कि एक भूमि(खसरा नँबर 2231) के लिए अक्तिराम के द्वारा दो अलग-अलग बयान दिया गया है. जिसका अवलोकन शेषनारायण द्वारा सूक्ष्मता से किया गया है.
बावजूद इसके शेषनारायण जायसवाल द्वारा जेठूराम के पक्ष में नामांतरण कर देना उन्हें कटघरे में खड़ा करता है.
अब आप लोगों को समझ में आ गया होगा कि जेठूराम वसीयत को 35 साल बाद नामांतरण हेतु प्रस्तुत कर रहा है, जो अपने आप में संदेह उत्पन्न करती है।
मुख्यमंत्री जी! इस खसरे की भूमि की जाँच करवाएं और कूटरचना करने वालों को जेल भेजें ताकि भविष्य में इस तरह की हरकत कोई न कर सके. इससे शासकीय जमीन भी षडयंत्रकारियों से सेफ रहेगी.