ठेकेदार और पूर्व पार्षद की मनमानी .. मरने के बाद सम्माजनक विदाई के लिए तरस रही लाशें.. तहसील भाठा के श्मशान में सामने आया हैरान करने वाला Video.. नीचे जलती रही चिता ऊपर पा!नी से बचाते रहे लाश को..*
*: ठेकेदार और पूर्व पार्षद की मनमानी .. मरने के बाद सम्माजनक विदाई के लिए तरस रही लाशें.. तहसील भाठा के श्मशान में सामने आया हैरान करने वाला Video.. नीचे जलती रही चिता ऊपर पानी से बचाते रहे लाश को..*
*कटघोरा* : पूरी उम्र अच्छे जिंदगी के लिए जद्दोजहद करने वाले एक आम इंसान को जब मौत के बाद भी सम्मानजनक विदाई ना मिले तो उसे आप क्या कहेंगे? भ्रष्टाचार की वेदी चढ़ चुके व्यवस्थाओं के बीच अब यह एक काला हकीकत बन चुका है. इन दिनों कटघोरा के तहसील भांठा में मातम में डूबे परिवार के सामने जहां अपनो को खो देने का गम होता है तो ठीक इसके बाद उस मरने वाले के बेहतर अंतिम संस्कार की चुनौती भी उनके सामने होती है. हर दिन ऐसी ही अंत्येष्टि ना सिर्फ मानवीय संवेदनाओं को कुंद कर रही है बल्कि सरकारी इंतजामो की भी रह-रहकर पोल खोल रही है. कहा जा रहा है कि अब जिंदगी तो जिंदगी मौत के बाद मरने वाला रुखसत ही सही ढंग से हो जाए तो बड़ी बात है.
वार्ड क्रमांक दो में मौजूद हिन्दू श्मशान घाट का एक महत्वपूर्ण निर्माण भ्रष्टाचार और बदइंतजामी की नई कहानी गढ़ रहा है. दूसरे मौसम में तो फिर भी कफन-दफन सही ढंग से हो जाये पर अगर बारिश के बीच सांसे उखड़ जाए तो घरवालो के माथे पर भी चिंता की लकीरें खींच जाती है. यहां लाशो के लिए सिर्फ चार कंधे नही बल्कि लाश को जलाने तक के लिए दर्जन भर लोगो की जरूरत पड़ती है.
दरअसल कमीशन और करप्शन के भंवर में फंसे नगरपालिक के पुर्व पार्षद और ठेकेदारों ने अपने निज हित को साधने के लिए श्मशान को भी नही बख़्शा है. सांसारिक तकलीफों से मुक्ति देने वाला मुक्तिधाम भ्रष्टाचार और असंवेदनहीनता से मुक्त नही रह पाया. कटघोरा के तहसील भांठा के बिजली आफिस के पास मौजूद हिन्दू श्मशान घाट में कार्यकाल 2013-2018) में शेड का निर्माण हुआ था. 2015-16 में पार्षद निधि के दो लाख रुपये की लागत से बनने वाले इस इस शेड के नीचे तीन लाशों के दाह संस्कार की व्यवस्था की जानी थी जबकि बारिश के दिनों में शवो पानी से बचाने छज्जा लगाया जाना था. लेकिन पूर्व पार्षद रामकुमार जायसवाल और स्थानीय ठेकेदार ने सांठगांठ कर इस पूरे निर्माण को अधर में छोड़ दिया. आधे-अधूरे और गुणवत्ताहीन निर्माण के बाद आजतक ना ऊपर किसी तरह का छाजन किया गया और ना ही पानी निकासी की व्यवस्था पूरी की गई.
इस बारे में स्थानीय लोगो ने कई बार पूर्व नगरपालिका प्रशासन से निर्माण पूरा कराने की गुहार लगाई लेकिन आज सत्ता और व्यवस्था दोनों ही बदल जाने के तीन साल बाद भी बदइंतजामी के हालात जस के तस है. आज जब बारिश के बीच एक स्थानीय युवक के शव अंतिम संस्कार के लिए इन मुक्तिधाम में लाया गया तो चुनौती फिर वही पुरानी थी. आधे लोग जहाँ चिता को आग देने में जुटे थे तो आधे क्रीमीयेशन छत पर चढ़कर लाश को पानी से बचाने का जतन कर रहे थे. जैसे-तैसे युवक का अंतिम संस्कार किया गया तब जाकर सबने राहत की सांस ली. लेकिन बार-बार सामने आते इस तरह के अमानवीय दृश्य को देखकर लोग यही कह रहे है कि बदनीयती और बदइंतजामी सिर्फ जिंदगी का ही नही बल्कि मौत और मौत के बाद आखिरी विदाई का भी सच और साथी बन चुका है.
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